विश्व में प्रदूषण से 90 लाख मौतें हुईं है!/ प्रसिद्ध यादव।

   


 विज्ञान विकास के लिए वरदान साबित हुआ तो मौत की सौदागर भी बना गया है। शहरीकरण , औद्योगिकरण   के कारण प्रकृति के साथ खूब छेड़छाड़ और दोहण हुआ । उद्योग के कचरे नदियों में गिर कर नदियों को प्रदूषित किया और उसके गगनचुंबी चिमनी के धुएं से वायु प्रदूषण हुआ।  जंगलों को विकास के नाम पर अंधाधुंध कटाई हुई।  पहले हर   किसान कुछ न कुछ पेंड, बगीचा लगाते थे लेकिन अब युवा पीढ़ी  खेतों में  गोदाम ,स्टोर बनाकर अधिक मुनाफा कमाने के चक्कड़ में पेंड लगाना भूल गए। सरकार पंचायतों में बृक्ष रोपण के बढ़ावा देने के लिए अरबों रुपये खर्च की है, लेकिन 70 फीसदी बृक्ष खत्म हो गया या लगा ही नहीं, लगा तो समुचित देखभाल के अभाव में खत्म हो गया।  खाली जमीन को सर्वे कर पेंड लगाने की जरूरत है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से हुई मौतों में से भी सर्वाधिक 9.8 लाख मौतें आबोहवा में घुले धूल के कणों (PM2.5) से प्रदूषण के कारण हुईं। हवा में मौजूद ये छोटे प्रदूषण कण ढाई माइक्रोन या उससे कम चौड़ाई के होते हैं। वायु प्रदूषण के कारण हुईं शेष 6.1 लाख मौतें घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से हुईं। 

सालभर में 23.5 लाख मौतों के आधार पर रोजाना की औसत मौतें निकालें तो यह संख्या 6400 होती है। यानी रोज 6400 लोग प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं। यह संख्या कोरोना महामारी के आंकड़े से कई गुना ज्यादा है। कोरोना से देश में करीब ढाई साल में 5 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। इसलिए अध्ययन में दिया गया प्रदूषण से मौतों का आंकड़ा चौंकाने वाला है। 

विश्व स्तर पर देखें तो 2019 में प्रदूषण के कारण 90 लाख मौतें हुई हैं। यह संख्या दुनियाभर में हर छह मौतों में से एक है। इन 90 लाख मौतों में से 66.70 लाख मौतों की वजह घरेलू प्रदूषण व वातावरण में फैले प्रदूषण है। 

दुनिया में हर छठी मौत विभिन्न तरह के प्रदूषण से हो रही है। इस रिपोर्ट में भारत के लिए राहत की बात यही है कि 2015 के मुकाबले 2019 में मौतों का आंकड़ा घटा है। 2015 में 25 लाख मौतें हुई थीं, वहीं 2019 में 23.5 लाख मौतें हुईं। 

चीन में 2015 में प्रदूषण से 18 लाख लोगों की मौत हुई थी। 2019 में यह बढ़कर 21.7 लाख पहुंच गई है। भारत में हवा सबसे घातक है। 2019 में वायु प्रदूषण से 16 लाख, जल प्रदूषण से 5 लाख और पेशेगत प्रदूषण से 1.6 लाख मौतें हुईं।

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