क्या मेरे साथ रह पाओगे ? (कविता)-प्रसिद्ध यादव।
शर्त बड़ा है
निभाओगे?
न किसी की चापलूसी
न किसी की चुगली
न किसी के हां में हां करता हूँ
क्या कर पाओगे ?
न किसी के आगे पीछे
न किसी के ऊपर नीचे
न भय है, न भाग्य को मानता हूं
दोहरे चरित्र वाले को न
फूटी नजरों से देखता हूँ
सत्य पथ पर चलने के लिए
अपनों के साथ भी छोड़ता हूँ।
क्या साथ छोड़ पाओगे ?
न कोई मेरा मित्र न कोई शत्रु है
जो मानवता की सेवा करे
उसे ही मानता हूँ।
न झूठ न पाखण्ड
न अंधविश्वास को मानता हूँ
न कोई ऊंच न नीच
न कोई छोटा न बड़ा
समतामूलक समाज को मानता हूँ।
न भ्रष्टाचारी, न व्यभिचारी
न शोषक ,न अत्याचारी
बुद्ध की दया ,करुणा
मदर टेरेसा की मानव सेवा
दशरथ मांझी के संघर्ष को मानता हूँ।
क्या मान पाओगे ?
न जाति, न धर्म,न क्षेत्र,न भाषा
में भेदभाव करता हूँ
वसुधैव कुटुंब को मानता हूँ।
कबीर दास के सखी पड़ता हूँ।
क्या पढ़ पाओगे?
न आग लगता हूँ
न ऐसे के साथ रहता हूँ
न मन में अहंकार
न चित में विकार
पत्थर को नहीं पूजता
न आडम्बर करता हूँ
दीन हीन को गले लगता हूँ।
लगा पाओगे?
क्या मेरे साथ रह पाओगे?
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