मदर टेरेसा की मानव सेवा ही धर्म ! /प्रसिद्ध यादव

      



आज धर्म के नाम पर सिर्फ़ नफरत ,घृणा फैलाया जा रहा है ।एक धर्म के लोग दूसरे धर्म को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं।ऐसे लोगों को मदर टेरेसा की जीवन से सीख लेना चाहिए। टेरेसा के लिए न कोई धर्म न कोई देश की सीमा रोक सकी और मानवता की सच्ची सेवा कर धर्म के मर्म ,सार को बता दीं। न कोई जप -तप ,न पूजा -व्रत ,न कथा वाचन ,न सत्संग,न पूजा की कोई विधि ,न मन्त्र ,न तंत्र,न धन,न वैभव, न सत्ता ,न जाति न जमात  फिर भी दुनिया की माँ बन गई ,सिर्फ करुणा,दया की भाव से।मदर टेरेसा अपनी आयु के हर लम्हे को पीड़ित, दुखी और जरूरतमंदों की सहायता में न्यौछावर किया। उनकी निःस्वार्थ सेवा, स्नेह और समर्पण इस धरती पर हमेशा याद रहेगा। वे सचमुच संसार की माँ थीं, उनकी स्मृति युग−युगों तक मानवता को रौशनी देती रहेगी।

युगों से भारत इस बात के लिये धनी रहा है कि उसे लगातार महापुरुषों का साथ मिलता रहा है। इस देश ने अपनी माटी के सपूतों का तो आदर−सत्कार किया ही है साथ ही अन्य देशों के महापुरुषों को न केवल अपने देश में बल्कि अपने दिलों में भी सम्मानजनक स्थान दिया और उनके बताए मार्गों पर चलने की कोशिश की है। हमारे लिए मदर टेरेसा भी एक ईश्वरीय वरदान थीं। भारतीय जनमानस पर अपने जीवन से उदाहरण के तौर पर उन्होंने ऐसे पदचिन्ह छोड़े हैं जो सदियों तक हमें प्रेरणा एवं पाथेय प्रदत्त करते रहेंगे। क्या जात−पांत, क्या ऊंच−नीच, क्या गरीब−अमीर, क्या शिक्षित−अनपढ़, इन सभी भेदभावों को ताक पर रख कर मदर ने हमें यह सिखाया है कि हम सभी इंसान हैं, ईश्वर की बनाई हुई सुंदर रचना हैं और उनमें कोई भेद नहीं हो सकता। उनका विश्वास था कि अगर हम किसी भी गरीब व्यक्ति को ऊपर उठाने का प्रयत्न करेंगे तो ईश्वर न केवल उस गरीब की बल्कि पूरे समाज की उन्नति के रास्ते खोल देगा। वे अपने सेवा कार्य को समुद्र में सिर्फ बूंद के समान मानती थीं। वह कहती थीं, 'मगर यह बूंद भी अत्यंत आवश्यक है। अगर मैं यह न करूं तो यह एक बूंद समुद्र में कम पड़ जाएगी।' सचमुच उनका काम रौशनी से रौशनी पैदा करना था। यही बहुत पहले महात्मा बुद्ध ने भी धर्म के मर्म को समझाया था,लेकिन मनुवादियों ने अपने धर्म को धंधा बनाकर मानव को अंधेरे कूप में धकेल दिया।


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