आदमी के स्पर्श मात्र से वस्तुएं कैसे अपवित्र हो जाता है ?-प्रसिद्ध यादव।
संविधान के अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का उन्मूलन: अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और किसी भी रूप में इसका अभ्यास वर्जित है।
धर्म के ठेकेदारों इस सवाल का जवाब आज भी वंचितों पूछते हैं।खून का एक ही रंग,एक ही मिट्टी, हवा, पानी फिर वंचित अछूत कैसे ? इसे ढोंग,आडम्बर नही तो और क्या कहें ? मेरा उपजाया हुआ अन्न,सब्जियां, दूध,घी,माखन मलाई,बुने हुए कपड़े , खोदे गये कुएं, तालाब आदि क्यों नहीं छूत हुए ? मनुवादी अपनी सुविधा के अनुसार आदमी को छूत और उपयोग के समान को अछूत माना। आपके स्पर्श मात्र से व्यक्ति और वस्तुएं अपवित्र हो जाती है। सबसे कठिन और श्रमयुक्त काम करने के बाद भी आपका समाज और अर्थ में रेखांकन शून्य है। बालक भीम को यह बात खटकती तो होगी।मन में अपमान और ग्लानि का भाव तो आता ही होगा। मगर इन सबके बावजूद अंबेडकर पढ़ना नहीं छोड़ते, बल्कि कभी-कभार शिक्षक से जाति और पढ़ाई के सवाल पर झगड़ पड़ते हैं।
यह अंबेडकर की विशेषता हैं कि वो जीवन में बहाने नहीं तलाशते और ना ही बेवजह सवाल खोजते हैं,उनका ध्येय बस जवाब पाने के लिए डट जाना हैं।
तभी घर से टाट-पट्टी ले जाकर पढ़ने वाला बच्चा आगे निकलता हैं, और इतना आगे निकलता कि अपने समय के तमाम सुविधासंपन्न एवं गॉडफादर्स के बल पर मचलने वाले लोगों में शिक्षा,शोध और चिंतन – तीनों दृष्टिकोणों में सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़े मिलते हैं। जाति के सवाल पर बचपन से लेकर महाराजा गायकवाड़ के दरबार में उच्च अधिकारी होने के बाद तक झेली गई कष्टसाध्य यातनाएं, “जाति-विनाश” के विचार के साथ बाहर आती है। इस दंश को वंचितों याद करो , संविधान पढ़ो और मनुवादियों को मुंहतोड़ जवाब दो। अम्बेडकर कहते थे व्यक्ति की नहीं, उसके विचारों को पूजा करो।
Comments
Post a Comment