मस्तिष्क पर प्रभाव ! -प्रसिद्ध यादव

   


घटना -दुर्घटना , हर्ष - विषाद , विस्मय आदि का प्रभाव हमारे मन  -मस्तिष्क पर सीधा पड़ता है। कुछ दुष्प्रभाव -प्रभाव संगति से ,पढ़ने से, देखने से ,परिस्थिति वश भी पड़ते हैं। सबसे अधिक प्रभाव बाल मन पर पड़ता है। अब सवाल है कि दुष्प्रभावों से कैसे बचें? सबसे पहले नकारात्मक विचारों से दूर रहना होगा। अब सोशल मीडिया व कुछ मीडिया में अश्लील ,नकरात्मक ,असत्य,काल्पनिक बातों को चढ़ा बढ़ा कर परोसा जाता है और हम उसे पढ़ते - पढ़ते सत्य मान लेते हैं। फिल्मों में भी इसका प्रचलन खूब हुआ। फ़िल्म निर्माता भी इससे अछूते नहीं रहे।टीवी धारावाहिकों की भी यही बात है। बच्चों के पाठ्य पुस्तक में भी सिलेबस बदले जा रहे हैं।नैतिक शिक्षा और नैतिकता का लोप हो रहा है। बंधुत्व, भाईचारे, मेल -मिलाप ,सहयोग ,आपसी सौहार्द की जगह नफरत, द्वेष, घृणा,ईर्ष्या, लोभ लालच  घर कर गया है। वर्तमान समय में इसे ही धर्म का मर्म समझाया जा रहा है। पर्व त्योहार में युवाओं के हाथों में हथियार देकर ,जुलूस निकालकर उपद्रव करवाया जा रहा है।कभी सोचे हैं कि बड़े होकर ये युवा क्या करेंगे?इनके भविष्य क्या होंगे ? कितने राजनेताओं के संतान ऐसे जुलूसों में शरीक होते हैं? कहीं उपद्रव, जुलूस में होते हैं? कहीं नहीं।वे अच्छे यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।वे विदेशों से पढ़कर यहां बड़े बड़े ओहदे पर होंगे ,बड़े बड़े राजनेता बनेंगे।  आज के भटके हुए युवा कल उनके दरवाजे पर सुरक्षा गार्ड के नॉकरी के लिए भी चिरौरी करेंगे । तब कहीं यह नसीब भी होगा। सोचिए!फसल लगाया कोई और तथा काट रहा है कोई और। आज अगर युवाओं में भटकाव खत्म हो जाये तो कल किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। जो युवा जिनके पीछे पीछे घूम रहे हैं वो चुनाव लड़ने वाले टिकटार्थी हैं।ये भी टिकटार्थी की संभावना कम हो गई है क्योंकि हर राजनीति दल में हर पद के लिए उनके संतान उत्तराधिकारी हो रहे हैं।बहुत कम संभावनाएं बची हुई है। राजनेताओं द्वारा ब्रेन वाश किया जाता है और घटनाओं में आई वाश भी होता हैं। घरियालु आंसू बहाए जाते हैं, गिरगिट की तरह रंग बदले जाते हैं, अंतरात्मा बदलती है, हृदय परिवर्तन भी होता है।  कुर्सी के लिए पैसे लेकर ईमान बिकते हैं।अब राजनीति घराना हो गया है जैसे ज्यूडिशियरी घराना, मीडिया घराना, संगीत घराना आदि।  कुछ संभावना रहती भी है तो  उसके लिए कम से कम करोड़पति होना जरूरी है। आम आदमी इन क्षेत्रों में हाशिये पर पहुंच गया है।जहां संभावनाएं न के बराबर है वहाँ समय देना मूर्खता है।   हम तर्कशील क्यों नहीं होते हैं? हमारे अंदर वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्यों नहीं होता है ? क्योंकि हम किसी न किसी जमूरे के बन्दर बनकर उसके इशारों पर नाच रहे होते हैं। जिस दिन हम नाचना बन्द कर देंगे, उस दिन से जमूरे को नचाना शुरू कर देंगें।जो अपने वश में है, जिसे मेहनत कर के हाशिल किया जा सकता है वो है शिक्षा, व्यवसाय ,हुनर आदि।यही जीवन में काम आएगा बाकी सब बकवास है। मित्र ,सगे संबंधियों ,परिवार सभी  तभी इज्जत करेंगे जब आप सफल होंगे। आदमी को सड़क पर भूखे प्यासे ,दीन - हीन दशा में भटकते देखें होंगें ,लेकिन कई कुत्तों के खाने  - पीने के लिए मेनू बने रहते हैं, उन्हें देखभाल करने के लिए नॉकर होते हैं, घूमने के लिए एसी गाड़ियां होती हैं, इलायज के लिए डॉक्टर्स होते हैं। यहाँ कुत्ते से भी गये  - गुजरे इंसान होते हैं। सोचिए क्यों? अपने मस्तिष्क पर जोर देकर सोचें।स्वतः उत्तर मिल जाएगा। सभी का औसत उत्तर होगा - समय का सदुपयोग नहीं करना।

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