रहौ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुःख भयउ अपारा।।
कैसे बड़े भाई श्री राम के तड़प में भरत द्वारा कही गई दोहे भाई -भाई में अटूट प्रेम को दिखाता है। भाई के लिए अपने सिंहासन को त्यागने के लिए व्याकु भाई की भावनाएं सहज समझा जा सकता है। आज सिंहासन के लिए कोई भी पतित काम करने से लोग न डरते हैं, न शर्म करते हैं।श्री राम के प्रति श्रद्धा उनकी मर्यादाओं का पालन करना है । आज 5 सौ साल के की अवधि के एक दिन पहले है। है कोई भरत जैसा भाई से प्यार करने वाले, सिंहासन त्याग करने वाले? अब स्थिति उल्टा है, सिंहासन के लिए कुछ भी करने को तैयार है तो रामराज्य का स्वप्न कितना साकार होगा ? श्री राम को मन कर्म, वचन से मानना होगा तब रामराज्य का स्वप्न साकार होगा।
करन कवन नाथ नहिं आयउ।
जानि कुटिल किधौं मोहि बिसंताउ।।
अहा धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिन्दु अनुरागी।।
कपटि कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहीं लीन्हा।।
जौं करन समुझि प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कल्प सत कोरी।।
जन अवगुण प्रभु मन न काऊ। दीन बंध्या अति मृदुल सुभाउ।।
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलि मिलहिं राम सगुन सुभ होइ।।
लक्षण अवधि रहहि जौं प्राण। अधम कवन जग मोहि समाना।।
राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।
बिप्र रूप धरि पवन सुत ऐ गयौ जनु पोथ।।1(क)।।
जाती देखि कुसासन जटा मुकुट कृष्ण गत।
राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात।।1(ख)
Comments
Post a Comment