मजदूरों की दुर्दशा ! 1 मई मजदूर दिवस पर मजदूरों को लाल सलाम!- प्रसिद्ध यादव।
2020 में, भारत में लगभग 476.67 मिलियन श्रमिक थे, जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा स्थान है। जिसमें से कृषि उद्योग में 41.19%, उद्योग क्षेत्र में 26.18% और सेवा क्षेत्र में कुल श्रम शक्ति का 32.33% शामिल है। मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए क्या क्या नहीं करते हैं? गांवों में काम नहीं मिलने से सबसे ज्यादा परेशानी मजदूरों को हो रही है. जो मजदूर मुख्य रूप से दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं, उनके पास अपनी आजीविका के लिए काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यदि मजदूरों को उनके गांवों में पर्याप्त वैकल्पिक श्रम कार्य मिलेगा तो वे शहरों की ओर क्यों पलायन करेंगे?
संबंधित स्थानों पर काम/नौकरी उपलब्ध न होने के कारण रोजगार की तलाश में मजदूरों का शहरों की ओर पलायन बढ़ गया। मजदूर यह भली-भांति जानते हुए अपना स्थान छोड़ते हैं कि शहरों में उन्हें उनकी कुशलता/काम की विविधता के अनुसार नौकरी/काम मिल सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सभी शहरों में दर्शनी होटल, स्टार होटल, सब्जी और थोक बाजार, स्ट्रीट वेंडर, फुटपाथ विक्रेता जैसे श्रमिक कार्य होते हैं और इमारतों/अपार्टमेंट/व्यावसायिक परिसरों, सड़क/जल निकासी कार्यों और कई दैनिक नौकरियों के निर्माण में लाखों श्रमिकों की आवश्यकता होती है। आवश्यक श्रम शक्ति. दुनिया के किसी भी देश का विकास सरकार की योजनाओं/परियोजनाओं को लागू करने के सभी चरणों में श्रम शक्ति की मदद के बिना सफल नहीं हो सकता है। कोरोना काल में मजदूरों की क्या दुर्दशा हुई थी ? जगजाहिर है। प्रवासी मजदूर तो लॉक डाउन में हजारों मील पैदल अपने बच्चों को कंधे पर लेकर घर पहुंचे थे। सचमुच उस वक्त लगता था कि इस देश में मजदूरों के लिए कोई नहीं है। वे जिये तो अपने भाग्य से और मरे तो दुर्भाग्य से। मजदूरों के पास औरों की तरह कोई पुश्तैनी जमीन ,सम्पत्ति नहीं होता है कि विषम परिस्थितियों में उसे बेचकर जीवन यापन कर सके। मजदूरों को काम नहीं मिलने का मतलब उसे व उसके परिवार को भूखे रहने की गारंटी।
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