न लोग मोदी की सुन रहे हैं , न झांसे में आ रहे हैं!
मोदी राजनीति नहीं, एलआईसी की भाषा बोल रहे हैं!
ज्यों ज्यों चुनाव हो रहे हैं, त्यों - त्यों मोदी को तपिस की लहर लग गई। 400 पार भूल गए।10 साल में ही देश मोदी एंड कंपनी को समझ गया। जनता की ताकत क्या होती है? यह समझ आने लगा है। तीसरे चरण के चुनाव तक बड़बोले उड़नखटोला से सीधे खटिया पकड़ लेंगें।बिहार में भले ही भाजप जदयू ,चिराग,उपेंद्र,मांझी में गठबंधन हुआ है लेकिन वोट एक दूसरे के ट्रांसफर की बात तो दूर, वोट एक दूसरे के क्रॉस में हो रहा है। इधर दो चरणों के चुनाव में इंडिया गठबंधन के प्रायः हर दल खाता खोल दिया है जबकि एनडीए के कुछ घटक दल शून्य पर पहुंच गए हैं। अब जहाँ इंडिया गठबंधन को खोने के लिए 1 और पाने के लिए 39 है तो सहज ही समझा जा सकता है कि स्थिति क्या है।सम्राट चौधरी पगड़ी बांध के माथा खुजला रहे हैं कि मेरा यहां एक न चला । न दल में न जनता में। चिराग व नीतीश एक दूसरे के साथ होकर भी खिलाफ है। जिसका फायदा गठबंधन को सीधा मिल रहा है ।यही हाल भाजपा जदयू की है। भाजपा को पाटलिपुत्र की कौन कहे पटना साहिब पर भी खतरा मंडरा रहा है।पीएम देश की नीतियों की बात भूल गए बुढ़ापे में मंगलसूत्र याद कर रहे हैं। मोदी गारंटी भूल गए। नीतीश जितना गठबंधन के साथ रहकर काम नहीं करते उतना भाजपा में जाकर कर दिया। सबसे पहले इसके 16 सीटें झटक लिया और एक मजबूत साथी मुकेश साहनी को गठबंधन के पाले में जाने के लिए मजबूर कर दिया। मोदी कॉंग्रेस पर प्रहार एलआईसी की भाषा की तरह बोल रहे हैं," जीवन के साथ भी ,जीवन के बाद भी". इनकी सभा में न वोटर्स के उत्साह है, जोश ।इससे ये भी ठंढा पर गए हैं, न वो तेज ,न ओज, न हनक न खनक। आखिर क्या हो गया है? ऐसे में इनके जीतने वाले भी प्रत्याशी हैं, उनका भी इनके नाम ,ब्रांड गर्क में मिला दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
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