नीतीश सरकार की दागी चेहरा शेल्टर होम कांड पार्ट 1

 

 



मुंबई में एक संस्था है टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज(TISS). ये सोशल ऑडिट करती है. बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के आदेश पर इसने 2017-18 में बिहार के सभी बालिका गृहों का सोशल ऑडिट किया. इसने 100 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी. इसके पेज नंबर 51 पर दावा किया गया कि मुजफ्फरपुर में चल रहे बालिका गृह सेवा संकल्प एवं विकास समिति में लड़कियों का यौन शोषण हो रहा है. रिपोर्ट में इस NGO के खिलाफ केस दर्ज करने की सिफारिश की गई थी. इसके बाद सरकार ने इस रिपोर्ट के आधार पर अपनी जांच कराई. इसमें TISS की रिपोर्ट में कही गई बात सच साबित हुई.
एक बच्ची ने उत्पीड़न का विरोध किया, उसे इतना पीटा कि मौत हो गई

जब जांच शुरू हुई तो पता चल कि रेप की गई बच्चियों में एक की उम्र तो महज 7 साल ही है. इसके अलावा मेडिकल जांच में तीन लड़कियों के गर्भवती होने की भी पुष्टि हुई. इसी दौरान एक लड़की ने पुलिस को बताया कि एक बच्ची ने गलत काम का विरोध किया, तो उसकी पिटाई की गई. उसे इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई. बाथरूम में उसकी लाश बरामद होने के बाद बाल संरक्षण गृह की ओर से उसे लीची के बागीचे में दफना दिया गया. लड़कियों ने कोर्ट को बताया था कि उनके लिए सबसे भयानक दिन मंगलवार का होता था. मंगलवार को उन बच्चियों की काउंसलिंग होती थी. काउंसलिंग के नाम पर उन उन्हें बाहर ले जाया जाता था, जहां उनके साथ उत्पीड़न होता था.
बड़े-बड़े अधिकारियों के यहां लड़कियों को सप्लाई किया जाता था
सीबीआई ने इस मामले में 21 को आरोपी बनाया. इनमें से 10 महिलाएं थीं, जो कि बालिका गृह की लड़कियों के साथ हो रही दरिंदगी को न सिर्फ छिपाती रहीं, बल्कि बच्चियों को चुप रहने के लिए उनको यातनाएं भी देती रहीं. यही नहीं, मुजफ्फरपुर बालिका गृह में तैनात रसोइया से लेकर गेटकीपर तक पर लड़कियों के साथ दुष्कर्म के आरोप लगे. बृजेश ठाकुर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम का संचालक था. वह इस कांड का मुख्य आरोपी था. उस पर यहां की 6 से अधिक लड़कियों ने दुष्कर्म का आरोप लगाया था. आरोप था की वह बड़े-बड़े अधिकारियों तक को यहां की लड़कियां सप्लाई करता था. इसके लिए उसने मुजफ्फरपुर और पटना में अपना सेफ हाउस बना रखा था.

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