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विकास की पटरी पर सरपट दौड़ती पूर्व मध्य रेल: उपलब्धियों से भरा रहा साल 2025 !

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  ​हाजीपुर | 28 दिसंबर, 2025 ​भारतीय रेल के नेटवर्क में रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले पूर्व मध्य रेल (ECR) के लिए वर्ष 2025 मील का पत्थर साबित हुआ है। अधोसंरचना विस्तार से लेकर यात्री सुविधाओं और सुरक्षा तकनीक तक, इस वित्तीय वर्ष में रेलवे ने विकास के नए आयाम स्थापित किए हैं। मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री सरस्वती चन्द्र द्वारा जारी विवरण के अनुसार, इस वर्ष न केवल नई रेल लाइनों का जाल बिछाया गया, बल्कि अत्याधुनिक सुरक्षा कवच प्रणाली और माल ढुलाई के क्षेत्र में भी ऐतिहासिक प्रगति हुई है। ​1. इन्फ्रास्ट्रक्चर में बड़ी छलांग: जुड़ते शहर, बढ़ती रफ्तार ​रेलवे ने इस वर्ष कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को पूर्ण कर यातायात को सुगम बनाया है: ​कोयला ढुलाई को मिला बल: शिवपुर-टोरी तीसरी लाइन (41.5 किमी) और टोरी-बीराटोली दोहरीकरण का कार्य पूर्ण होने से झारखंड की चतरा एवं लातेहार माइन्स से पावर प्लांटों तक कोयले की आपूर्ति अब बिना किसी बाधा के हो रही है। ​नई रेल लाइनें: बिहार शरीफ से शेखपुरा तक नई रेल लाइन का कार्य पूर्ण हो चुका है। वहीं, नेउरा-दनियावां-शेखपुरा परियोजना का बड़ा हिस्सा (जटडुमरी से शेखपुरा...

रोहतास के 13 करोड़ के ढहते बिहार के 'सेल्फी पॉइंट' !

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  "   सिर्फ वही देखना जो स्वार्थ के अनुकूल हो।" ​बिहार में इन दिनों एक नया 'टूरिज्म' फल-फूल रहा है— 'ध्वस्त स्थापत्य कला' का दर्शन। रोहतास में अभी रोपवे का टावर क्या गिरा, मानों भ्रष्टाचार की नींव ने एक और अंगड़ाई ली हो। सरकार कहती है कि हम भ्रष्टाचार को 'ध्वस्त' कर देंगे, लेकिन धरातल पर भ्रष्टाचारी ही पूरी संरचनाओं को ध्वस्त कर सरकार के दावों की हवा निकाल रहे हैं। यह विडंबना ही है कि बिहार में अब पुल और टावर निर्माण के लिए नहीं, बल्कि गिरने के 'विश्व रिकॉर्ड' बनाने के लिए चर्चा में हैं। ​जब 'विकास' जल-समाधि लेने लगे ​पिछले कुछ महीनों में बिहार ने वो मंजर देखे हैं जो किसी डरावनी फिल्म से कम नहीं। अररिया, सिवान, मधुबनी और किशनगंज—ये महज़ जिलों के नाम नहीं हैं, ये उन जगहों की सूची है जहाँ करोड़ों की लागत से बने पुल जनता के काम आने से पहले ही नदियों में समा गए। ​अगुवानी-सुल्तानगंज पुल: यह तो भ्रष्टाचार का 'ताजमहल' बन गया, जो दो बार गिरा। ​अररिया का बकरा नदी पुल: उद्घाटन से पहले ही जो जलमग्न हो गया, मानो अपनी बदकिस्मती पर आँसू बहा रहा ...

सत्ता की ढाल बनता मीडिया: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का ढहता स्वरूप !

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    मीडिया को सरकार का 'पीआर (PR) एजेंट' नहीं, बल्कि 'वॉचडॉग' होना चाहिए।  ​लोकतंत्र के तीन स्तंभों—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की निगरानी के लिए चौथे स्तंभ के रूप में 'मीडिया' की कल्पना की गई थी। मीडिया का धर्म था सत्ता से कठिन सवाल पूछना और जनता की आवाज़ बनना। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में, मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सूचना देने के बजाय 'नैरेटिव' (कथा) गढ़ने में लगा है। जब मीडिया जनता के मुद्दों को उठाने के बजाय सरकार के राजनीतिक हितों की 'जुगलबंदी' करने लगे, तो यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक चेतावनी है। ​जुगलबंदी या जवाबदेही से बचाव? जब हम 'डबल इंजन' जैसी राजनीतिक मार्केटिंग की शब्दावली का उपयोग समाचारों में करते हैं, तो हम अनजाने में (या जानबूझकर) सत्ता के प्रवक्ता बन जाते हैं। ​संवेदनशीलता का अभाव: बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषी को जमानत मिलने पर मीडिया का ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि पीड़ित को न्याय कैसे मिले या व्यवस्था में क्या खामियां हैं। इसके उलट, जब मीडिया यह चिंता करने लगे कि इस फैसले से सरकार 'रक्षात्मक' (...

​कट्टरपंथ: संवैधानिक मूल्यों का ह्रास और अस्थिरता का मार्ग !

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  ​आज के दौर में कट्टरपंथ और वैचारिक संकीर्णता एक ऐसी चुनौती बनकर उभरी है, जो न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रही है, बल्कि राष्ट्र की लोकतांत्रिक नींव पर भी प्रहार कर रही है। जब भी कोई समाज समावेशी विचारों को त्यागकर कट्टरपंथ की ओर कदम बढ़ाता है, तो सबसे पहले 'धर्मनिरपेक्षता' और 'बहुलतावाद' जैसे मूल्य बलि चढ़ जाते हैं। ​संवैधानिक ढांचे पर प्रहार ​भारत का संविधान समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर टिका है।  यदि देश में ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा हावी होती है जो केवल एक विशिष्ट पहचान (जैसे 'हिंदू राष्ट्र') को प्राथमिकता देती है, तो वहां आधुनिक लोकतांत्रिक संविधान के लिए कोई स्थान शेष नहीं बचेगा। संविधान का मूल उद्देश्य ही हर नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय का हो, समान अधिकार देना है। कट्टरपंथ इस मूल भावना के विपरीत कार्य करता है। ​अराजकता का भय: पड़ोसी देशों से सीख ​इतिहास और वर्तमान गवाह हैं कि जिन देशों ने धार्मिक कट्टरपंथ को अपनी राजनीति और शासन का आधार बनाया, वे आज अस्थिरता और अराजकता के दौर से गुजर रहे हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे...

अमेरिकी टैरिफ नीतियां और भारतीय रुपया: एक गहराता आर्थिक संकट।

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    ​वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की आर्थिक नीतियों ने पूरी दुनिया में अनिश्चितता का माहौल बना दिया है। विशेष रूप से उनकी शुल्क नीतियां (Tariff Policies) वैश्विक व्यापार संतुलन को प्रभावित कर रही हैं, जिससे भारत जैसे विकासशील देशों के लिए आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। ​मुख्य आर्थिक बिंदु ​एकतरफा शुल्क नीतियां: ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत के प्रति अपनाए जा रहे "एकतरफा पक्षपात" और ऊंचे टैरिफ के कारण भारतीय निर्यात प्रभावित हो रहा है। इसे आर्थिक भाषा में 'व्यापार संरक्षणवाद' (Trade Protectionism) कहा जाता है। ​रुपये का अवमूल्यन (Depreciation): भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर की तुलना में लगातार कमजोर हो रहा है। जब घरेलू मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के मुकाबले गिरता है, तो आयात महंगा हो जाता है। ​ऐतिहासिक गिरावट: डॉलर का ₹91 के स्तर पर पहुंचना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंताजनक संकेत है। यह न केवल मुद्रास्फीति (Inflation) के खतरे को बढ़ाता है, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दबाव डालता है।

ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की 'हाइड्रोजन क्रांति': एक सुनहरा भविष्य !

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    ​वर्तमान समय में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन की चुनौतियों से जूझ रही है, भारत ने स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में एक बड़ी उम्मीद जगाई है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, परिवहन, बंदरगाह और स्टील जैसे प्रमुख उद्योगों को 'कार्बन-मुक्त' करने के लिए हाइड्रोजन की मांग तेजी से बढ़ रही है। ​1. भारत के पास ऊर्जा का विशाल भंडार ​विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के पास हाइड्रोजन का इतना विशाल प्राकृतिक भंडार है कि यह अगले 200 वर्षों से भी अधिक समय तक हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है। यह न केवल हमें ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि पेट्रोलियम आयात पर हमारी निर्भरता को भी कम करेगा। ​2. औद्योगिक ही नहीं, अब घरेलू उपयोग की बारी ​हाइड्रोजन का सबसे रोमांचक पहलू इसका घरेलू इस्तेमाल है। नए आविष्कारों और आधुनिक तकनीक के माध्यम से, वह दिन दूर नहीं जब हाइड्रोजन हमारे घरों की रसोई और अन्य दैनिक कार्यों के लिए आसानी से उपलब्ध होगा। यह आम आदमी के जीवन को अधिक सस्ता और प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम होगा। ​3. नवीकरणीय ऊर्जा और सरकारी लक्ष्य ​भारत सरकार ...

​वेदना से विवेक तक: चेतना का रूपांतरण !

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  ​जीवन केवल सुखद अनुभवों की शृंखला नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, पीड़ा और अंतर्द्वंद्वों का एक विस्तृत सागर है। अक्सर हम दुःख को एक अंत मान लेते हैं, लेकिन दार्शनिक दृष्टि से देखें तो 'वेदना' केवल पीड़ा नहीं, बल्कि जीवन की गूंज है। यह वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को आत्म-निरीक्षण और सत्य की खोज के लिए बाध्य करती है। ​पीड़ा का दार्शनिक पक्ष ​साधारण स्तर पर दुःख हमें विचलित करता है, लेकिन जब यही दुःख हमारी चेतना से जुड़ता है, तो यह व्यक्तित्व निर्माण का साधन बन जाता है। छवि के अनुसार, चेतना ही वह माध्यम है जो साधारण अनुभवों को 'जीवन दर्शन' में बदल देती है। जब हम अपनी पीड़ा को केवल व्यक्तिगत हानि न मानकर उसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते हैं, तब 'विवेक' का जन्म होता है। ​महापुरुषों के जीवन से सीख ​इतिहास गवाह है कि महान व्यक्तित्वों का निर्माण कठिन परिस्थितियों की भट्टी में ही हुआ है: ​महात्मा बुद्ध: उन्होंने जन्म, मृत्यु और रोग जैसी सार्वभौमिक पीड़ा को देखा, लेकिन वे उससे टूटे नहीं। उन्होंने उस वेदना को करुणा और आत्म-ज्ञान में रूपांतरित कर दिया। ​महर्षि पतंजलि: उन्हों...