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'पड़ोसी धर्म' और बदलता जीवन। 'पड़ोसी धर्म': कल और आज।

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    ​एक समय था जब 'पड़ोसी' हमारे जीवन का अभिन्न अंग हुआ करता था।  'पड़ोसियों से सगा दूसरा कोई और नहीं'?"। यह भावना दर्शाती थी कि पड़ोसी केवल भौगोलिक दूरी पर रहने वाले लोग नहीं थे, बल्कि सुख-दुख और जीवन की हर खुशी-गम में साझेदार थे। ​पहले का जीवन: पड़ोस की महिलाएँ काम में हाथ बँटाती थीं, दुख-सुख में भागीदारी करती थीं, और दिवाली के पटाखों से लेकर तीज-त्योहारों तक, सब मिलकर मनाते थे। किसी के बीमार होने पर 'पड़ोसी डॉक्टर' के पास जाना भी एक मानवीय बंधन का प्रतीक था। ​आज का जीवन: आज की 'फ्लैट संस्कृति' और 'एकाकी जीवन' ने इस रिश्ते को बदल दिया है। आज हमें यही नहीं पता होता कि हमारे पड़ोस में कौन रह रहा है। मोबाइल और इंटरनेट के इस युग में, हम पड़ोस की भावना को 'तुच्छ' और अनावश्यक समझने लगे हैं। ​ सांस्कृतिक उथल-पुथल और अकेलापन रिश्ते केवल 'काम-काज' तक सीमित हो गए हैं, और शादियाँ जो पहले पंद्रह-बीस दिन तक चलती थीं, वे अब दो दिन में 'निपटा दी जाती हैं'। ​"आज का दौर सांस्कृतिक उथल-पुथल को और लेता जा रहा है और इसके लिए हम ही...

'बाड़ ही खेत को खाने लगे': बिहार में 'नशाखोरी' का नया गोरखधंधा, सूखा नशा और दवा माफिया!

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     ​- शराबबंदी के बावजूद युवा 'नशे' के जाल में, सरकार और प्रशासन पर गंभीर सवाल। ​बिहार में शराबबंदी को एक क्रांतिकारी कदम के रूप में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य राज्य को 'नशामुक्त' बनाना था। लेकिन, इस जनहितकारी पहल के बावजूद, आज राज्य की युवा पीढ़ी एक नए और खतरनाक नशे के गोरखधंधे की गिरफ्त में है। जहाँ दवा विक्रेता (ड्रग पेडलर्स) और अवैध कारोबारी मिलकर युवा वर्ग को 'सूखे नशे' और नशीली दवाओं की लत लगा रहे हैं। यह स्थिति शराबबंदी की सफलता पर ही नहीं, बल्कि प्रशासन की नीयत और कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। ​ 'नया गोरखधंधा': दवा विक्रेता बने नशे के सौदागर यह स्पष्ट है कि नशीली दवाओं की आपूर्ति का एक खतरनाक चक्र चल रहा है: ​षड्यंत्र में संलिप्तता: कई दवा विक्रेता इस अवैध कारोबार में सीधे तौर पर संलिप्त हैं। ​सांठगांठ और खरीद: युवा इन्हीं विक्रेताओं से सांठगांठ करके नशे वाली दवाइयाँ खरीदते हैं। ​दस गुना मुनाफा: इन दवाओं को 10 गुना ज़्यादा दाम पर नशे के आदी लोगों को बेचा जाता है, जिससे यह एक उच्च मुनाफे वाला संगठित अपराध बन चुका है। ​निशाने पर ...

बिहार की '10 हजारी' योजना: चुनावी दान या वित्तीय बोझ?

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   भारत के  इतिहास में पहली बार सरकार द्वारा  10-10 हजार रुपये में वोट खरीदी गई है-पी के। वर्तमान में भी बिहार सरकार प्रतिदिन ₹63 करोड़ से अधिक का ब्याज चुका रही है। ​जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने बिहार के हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों के संदर्भ में एक तीखा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर सत्ताधारी दल पर '10-10 हजार रुपये में वोट खरीदने' का आरोप लगाया है। उनका इशारा स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की ओर है, जिसके तहत पात्र महिलाओं के खाते में ₹10,000 की पहली किस्त भेजी गई है और बाद में ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता का वादा किया गया है। ​प्रशांत किशोर ने अगले 18-20 महीनों का प्लान बनाते हुए घोषणा की है कि उनकी पार्टी उन महिलाओं को ₹2 लाख की शेष राशि दिलाने के लिए अभियान चलाएगी, जिन्हें पहली किस्त मिल चुकी है। यह कदम एक राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है, लेकिन इसका सीधा असर बिहार की नाजुक वित्तीय स्थिति पर पड़ सकता है। ​ योजना का वित्तीय बोझ: 10,000 रुपये और 2 लाख रुपये का समीकरण ​मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत, लगभग 1 करोड़ महि...

प्रोफेसर जोसेफ़ की सेवानिवृत्ति: ज्ञान की तपस्या का विराम!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​राम लखन सिंह यादव कॉलेज में चार दशक की गौरवशाली सेवा का समापन! ​चार दशकों तक राम लखन सिंह यादव कॉलेज, अनीसाबाद, पटना के प्रांगण को अपने ज्ञान के आलोक से आलोकित करने वाले प्रोफेसर एस. एस. जोसेफ़ ने सेवाकाल से अवकाश ग्रहण कर लिया है। उनका यह विराम मात्र एक प्रोफेसर की सेवानिवृत्ति नहीं, अपितु कॉलेज के शैक्षणिक गगन में एक तेजस्वी नक्षत्र के ओझल हो जाने जैसा है। ​ 'वटवृक्ष' सा व्यक्तित्व और 'गंगा' सी वाणी ​वनस्पति विज्ञान (Botany) के इस प्रखर विद्वान का व्यक्तित्व किसी सुदृढ़ वटवृक्ष के समान था—गहराई और स्थिरता से परिपूर्ण। उनकी वाणी में धाराप्रवाह अंग्रेजी की सरिता बहती थी, जो श्रोताओं को सहज ही अपने साथ बहा ले जाती थी। वे केवल पाठ्यक्रम के ज्ञाता नहीं थे; देश-दुनिया की खबरों को वे तर्क की कसौटी पर कसते थे और उनकी व्याख्या की कला अद्भुत थी। लंबे, सुगठित कद-काठी और सदाचारी रखरखाव (Well-maintained) में रहने वाले प्रोफ़ेसर साहब जब किसी विषय पर बोलते थे, तो वह बात सीधे हृदय के द्वार तक पहुँचती थी। ​उनके जाने से आज कॉलेज का गलियारा सूना-सूना प्रतीत होता है, मानो वीणा का कोई ...

'सूत्रधार' की नाट्य कार्यशाला का भव्य समापन: सृजन और अभिव्यक्ति की नई उड़ान !

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    ​दस दिवसीय कला-साधना से छात्र-छात्राओं में हुआ नवजागरण! ​आरा: प्रकृति के स्पंदन के साथ ही, सांस्कृतिक चेतना का एक नया आलोक आरा की धरती पर उतर आया है। जहां वातावरण अभी तक सोया हुआ था, अब वह अंगड़ाई लेकर जागृत हो उठा है। इन दिनों आरा का परिवेश एक अप्रतिम ऊर्जा से ओत-प्रोत है। विगत 12 नवंबर से यहाँ का वातावरण सैकड़ों बच्चों के मधुर संगीत और जीवंत नृत्य की थाप से गुंजायमान रहा। जो बाल-हृदय कल तक कला की विविध विधाओं से अनभिज्ञ थे, आज उन्होंने अपने जीवन में आशा और अभिव्यक्ति के असंख्य रंगों को पहचानना सीख लिया है। ​यह नवजागरण बिहार, पटना की सुविख्यात नाट्य संस्था 'सूत्रधार' द्वारा आयोजित दस दिवसीय निःशुल्क प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला का प्रतिफल है। लगभग 35-40 उत्साही छात्र-छात्राएँ प्रतिदिन यादव विद्यापीठ मध्य विद्यालय, मौलाबाग में कला की इस यज्ञशाला में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। इन बच्चों के स्वर, उनकी वाणी, उनका उल्लास और उनकी आकांक्षाएँ—सब एक लय, एक ताल में समाहित हो चुके हैं। यह अद्वितीय प्रयास 'सूत्रधार' के कर्मठ और वरिष्ठ प्रशिक्षक कलाकारों की अथक साधना का परि...

न्याय की पुकार: क्या नेपाल भागेंगे अपराधी, या गया में होगा पिंडदान? 😢-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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   ​–तस्वीर में मृतक के परिजनों को ढांढस बंधाते मा सम्राट जी और मैं। बिहार के गृहमंत्री को एक खुला पत्र: नीरज मुखिया की शहादत और त्रस्त जनता की उम्मीद – ​माननीय गृहमंत्री, श्री सम्राट चौधरी जी, ​यह पत्र सिर्फ़ एक नागरिक का आक्रोश नहीं है, बल्कि उस अंतिम पायदान के त्रस्त लोगों की आवाज़ है, जो आज भी न्याय की बाट जोह रहे हैं। ​आज मुझे वह दिन स्पष्ट रूप से याद है: 14 दिसंबर 2023। हमने एक साथ शहीद नीरज कुशवाहा मुखिया की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया था। उस सभा की अध्यक्षता करने का अवसर मुझे मिला था, और मैंने वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक सच्चाइयों को बड़ी बारीकी से आपके सामने रखा था। ​ठीक एक साल पहले, 14 दिसंबर 2022 को, सुशासन के दावे वाली सरकार के बीच, फुलवारी प्रखंड के फरीदपुर गाँव में, नीरज मुखिया को उनके आवास पर, दिनदहाड़े सुबह 9 बजे, दर्जनों लोगों के बीच सामंती शक्तियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था। ​उस दिन, मेरे उद्गार थे कि "कैसे अंतिम पायदान के लोगों को ख़शी, बकरी की तरह काटा जा रहा है।" यह उक्ति, लोगों के दिलों को झकझोर गई थी। ​आपके प्रत्युत्तर में आपने जो आशा भरी ...

'हास' की ओट में 'ह्रास': मानवीय परिपक्वता का मूल्यांकन। सार्वजनिक उपहास: एक सामाजिक व्याधि।

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    विजय का भ्रम और आत्मिक पराजय। ​"कई बार यह प्रवृत्ति समूहों में, कार्यस्थलों पर, या मित्र मंडली के सहज वातावरण में भी परिलक्षित होती है कि किसी व्यक्ति की निजी कमी को सबके सामने उजागर कर उसे हास्य का विषय बना दिया जाता है। यह कृत्य क्षणिक मनोरंजन की आपूर्ति अवश्य करता है, किंतु इसके गहरे मानवीय निहितार्थ हैं। यह एक ऐसी सामाजिक व्याधि है, जो संवेदनशीलता के मर्म को क्षीण करती है।" ​यह क्षणिक हास्य उत्पन्न करने वाला कृत्य, वास्तव में, संवेदना का अनादर है। जिस क्षण कोई व्यक्ति दूसरे की निजी त्रुटि या दुर्बलता को 'मंच' प्रदान कर उसे हंसी का पात्र बनाता है, वह अहंकार के तुष्टीकरण में संलग्न होता है। यह एक ऐसा नैतिक दरार है, जो समूह के भीतर विश्वास और सम्मान की नींव को कमजोर करता है। उपहास की यह कला, केवल उस व्यक्ति को ही नहीं आहत करती, जिसे निशाना बनाया गया है, बल्कि यह दर्शकों में भी सहानुभूति के बीजों को सुखा देती है। यह एक छिपा हुआ विषाणु है, जो सौहार्दपूर्ण संबंधों को भीतर से खोखला करता चला जाता है।  उपहास करने वाला व्यक्ति उस क्षण खुद को विजेता समझता है— मानो उसने ...