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9 जुलाई को बिहार बंद का आह्वान इंडिया की को-ऑर्डिनेशन कमिटी के अध्यक्ष तेजस्वी यादव ने किया है।

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    यह आह्वान चुनाव आयोग (ECI) द्वारा मतदाता सूची में नाम जोड़ने के संबंध में लगाए जा रहे कथित "अव्यावहारिक शर्तों" और "कुत्सित रणनीति" के विरोध में किया गया है। मुख्य आरोप और चिंताएं निम्नलिखित हैं: नागरिकता और मतदाता पहचान का क्षेत्राधिकार: आरोप है कि चुनाव आयोग नागरिकता तय करने के गृह विभाग के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहा है। मतदाता जागरूकता बनाम "मतदाता निद्रा" अभियान: वक्ता का मानना है कि पहले चुनाव आयोग मतदाता जागरूकता अभियान चलाकर मतदान प्रतिशत बढ़ाने का काम करता था, लेकिन अब उसकी नीतियां मतदाताओं को मतदान प्रक्रिया से दूर करने वाली (जिसे "मतदाता निद्रा अभियान" कहा गया है) लग रही हैं। अव्यावहारिक दस्तावेज़ आवश्यकताएं: चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं को पंजीकृत करने के लिए 11 दस्तावेज़ों और फोटो की मांग को अव्यावहारिक बताया गया है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनके पास ये दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं। ईआरओ (निर्वाचक निबंधक अधिकारी) को अत्यधिक शक्ति: यह चिंता व्यक्त की गई है कि नए नियमों के तहत ईआरओ को स्थानीय स्तर पर जांच करने और मतदाता की पहचान त...

बिहार के पूर्णिया में अंधविश्वास की आग में भस्म हुआ परिवार: कहाँ है सुशासन ?😢😢

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    बिहार के पूर्णिया जिले के टेटागामा गांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक के अंधविश्वास में एक पूरे परिवार के पांच लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई, और तो और उनके शवों को जलाकर सबूत मिटाने का भी प्रयास किया गया। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि समाज में गहरे जड़ जमाए अंधविश्वास के काले सच को भी उजागर करती है, जो आज भी 21वीं सदी में इंसानियत को भस्म कर रहा है। यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब यह सब हो रहा था, तब बिहार सरकार कहाँ सोई हुई थी? यह सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और प्रशासनिक निष्क्रियता का भी एक भयावह उदाहरण है। इस हृदय विदारक घटना पर कबीर की वाणी हमें पाखंड और ढोंग पर विचार करने को मजबूर करती है: कबीर मनवा भया उदास, जब देखा जग अंधियारा। ज्ञान बिना नर भटकत डोले, जैसे मृग जल बिन हारा॥ कबीर ने हमेशा अज्ञानता और पाखंड पर प्रहार किया। टेटागामा की घटना उसी अज्ञानता का वीभत्स परिणाम है, जहाँ ज्ञान की कमी और अंधविश्वास ने लोगों को इतना अंधा कर दिया कि वे मनुष्यता की सारी...

सरकार का निजीकरण: एक व्यंग्यात्मक विचार या कड़वी सच्चाई?

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     मेरा यह विचार कि क्यों न सरकार को ही निजीकरण कर दिया जाए, सुनने में भले ही व्यंग्यात्मक लगे, लेकिन यह उन कड़वी सच्चाइयों पर प्रहार करता है जो हमारे देश में चल रही हैं। जब रेलवे, एयरपोर्ट और BSNL जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को 'व्यापार दृष्टिकोण' से देखा जा सकता है, तो फिर देश चलाने वाली सरकार को क्यों नहीं? आखिर, अगर 'राष्ट्रहित' का मतलब सिर्फ मुनाफाखोरी हो गया है, तो इस मुनाफे की दौड़ में सरकार क्यों पीछे रहे?  मेरा यह तर्क बड़ा सीधा और आकर्षक है: विधायक 15-20 हज़ार में, सांसद 30 हज़ार में, मंत्री 35 हज़ार में और मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री 50 हज़ार में मिल जाएंगे! और तो और, ये सब पढ़े-लिखे, IITian, प्रबंधक, PhD धारक और स्वच्छ छवि वाले होंगे! सोचिए, कितनी बचत होगी! अरबों रुपये देश की तिजोरी में वापस आएंगे और नेताओं में 'कान पकड़कर बाहर' किए जाने का डर भी रहेगा। यानी, ईमानदारी का इंजेक्शन भी लग जाएगा। यह बात सुनने में जितनी हास्यास्पद है, उतनी ही सोचने पर मजबूर करती है। जब देश की जनता को अक्सर यह सुनने को मिलता है कि सरकारी संस्थाएं घाटे में चल रही हैं और उन्हें न...

एक परिवार की पुकार: रामलड्डू की सकुशल वापसी के लिए सरकार से गुहार !😢प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    आज, पटना के द्वारिकापुरी कॉलोनी में रहने वाले समाजसेवी रामलड्डू कुमार की गुमशुदगी ने पूरे परिवार और जानने वालों को गहरे सदमे में डाल दिया है। शुक्रवार सुबह से लापता 50 वर्षीय रामलड्डू कुमार अभी तक घर नहीं लौटे हैं, और हर बीतते पल के साथ परिवार में अनहोनी की आशंका बढ़ती जा रही है। रामलड्डू कुमार, जिनके पैतृक गांव फुलवारी शरीफ थाना के मैनपुर अंदा पंचायत का मंझौली गांव है, का ननिहाल खगौल थाना के जमालुद्दीन चक में और ससुराल इसी थाना के बड़ी बदलपुरा में है। फिलहाल, वे खगौल द्वारिकापुरी में अपने अपार्टमेंट में वर्षों से रह रहे थे। उनके पिता बलछरी यादव दानापुर रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। व्यक्तिगत रूप से, मैं उन्हें बचपन से जानता हूं। वे मेरे ही क्वार्टर के बगल में रहते थे और मुझे मुंहबोले मामा कहते थे। हमारे परिवारों के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। रामलड्डू जमीन-जायदाद से संबंधित कुछ कारोबार करते थे और उनके कुछ अन्य व्यवसाय भी थे। जहाँ तक जानकारी है, उनकी किसी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। हालांकि, व्यवसायिक कारणों से किसी से मनमुटाव या विवाद हुआ हो, यह कहना मुश्किल है। परिवारजनो...

गोपाल खेमका के भाई का वर्तमान सरकार पर गंभीर आरोप: "महाजंगल राज"!

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    शंकर खेमका ने कहा,” थाना पता नहीं क्या कर रहा था ? सो रहा था या ड्यूटी कर रहा था. उनको इस मामले की खबर क्यों नहीं है ? उन्हे बुलेट की आवाज नहीं सुनाई दी. 01:33 में गांधी मैदान की पुलिस पहुंची थी. दो बजे के  आस -पास SDPO आए. उसके बाद ढाई बजे के आसपास शहर की एसपी मैडम आई थी. हमलोगों के सामने वो ऐसे आकर खड़े हो गए जैसे वो तमाशा देख रहे हो. हमलोगों ने उन्हे बताया कि यहां घटना हुई है.  गोपाल खेमका के भाई ने वर्तमान सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए इसे "संगठित अपराध" बताया है। उन्होंने दावा किया है कि यह स्थिति लालू राज से भी बदतर है, जिसे वे "महाजंगल राज" करार दे रहे हैं। उनके अनुसार, पिछले छह महीनों में आठ उद्योगपतियों की हत्याएं हुई हैं, जो कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को उजागर करता है। यह आरोप राज्य में बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था और व्यापारिक समुदाय के बीच बढ़ती असुरक्षा की भावना को दर्शाता है। किसी भी राज्य के लिए, खासकर जहां व्यापार और उद्योग को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा हो, उद्योगपतियों की हत्याएं एक गंभीर चिंता का विषय हैं। इस तरह के दावों की गंभीरता को...

तेजस्वी यादव का मीडिया पर हमला: क्या भारतीय मीडिया वाकई 'बिका हुआ' है?

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   बेशर्म व बिकाऊ जैसे शब्दों का प्रयोग किये।  हाल ही पद्मश्री सम्मानित एक वरिष्ठ पत्रकार अपने कॉलम में लगातार नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी पर आलेख लिखकर अपने आकाओं को खुश रखने की चेष्टा कर रहे हैं लेकिन बिहार में बढ़ते भ्रष्टाचार, अपराध, हत्या पर एक लाइन नही लिखते हैं। कैसे इस बुढापे में भी अंतरात्मा मर गया, वो जाने । हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने भारतीय मीडिया पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि "विपक्ष की ख़बर नहीं छापती कायर अखबार, जल्द ही बायकॉट करेंगे।" यह बयान भारतीय मीडिया के मौजूदा परिदृश्य पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है: क्या मीडिया वाकई निष्पक्ष नहीं रहा है? क्या वह सत्ता प्रतिष्ठान का पक्षधर हो गया है और विपक्ष की आवाज को दबा रहा है? तेजस्वी के बयान और मीडिया की वास्तविकता तेजस्वी यादव का यह बयान कोई नया नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से, कई विपक्षी नेता और यहाँ तक कि कुछ स्वतंत्र पत्रकार भी भारतीय मीडिया के एक बड़े हिस्से पर सरकार समर्थक होने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सवाल उठाने से बचने का आरोप लगाते रहे हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है क...

बिहार में क्यों बेखौफ हैं अपराधी? हाल की घटनाओं से उठे गंभीर सवाल !

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    बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाएं, खासकर हाल ही में हुई कुछ जघन्य हत्याएं, राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। उद्योगपति गोपाल खेमका और 7 साल पहले उनके पुत्र की हाजीपुर में हुई निर्मम हत्या, और सिवान में तीन भाइयों की नृशंस हत्या, यह दर्शाता है कि अपराधी अब किसी भी हद तक जाने से नहीं डर रहे हैं। आखिर क्यों अपराधी इतने बेखौफ हो गए हैं? अपराधियों के बेखौफ होने के प्रमुख कारण कई कारक हैं जो बिहार में अपराधियों को खुली छूट दे रहे हैं: कमजोर कानून व्यवस्था और पुलिस की निष्क्रियता: अक्सर देखा जाता है कि पुलिस की प्रतिक्रिया धीमी होती है और गश्त अपर्याप्त। आपराधिक मामलों में त्वरित और प्रभावी जांच का अभाव अपराधियों को यह संदेश देता है कि उन्हें आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया में देरी: अदालती मामलों का लंबा खिंचना और दोषियों को सजा मिलने में लगने वाला अत्यधिक समय अपराधियों के मन से कानून का डर खत्म कर देता है। जमानत पर छूटे अपराधी अक्सर फिर से अपराधों में शामिल हो जाते हैं, जिससे कानून का मजाक उड़ता है। पुलिस बल में कमी और संसाधनों का अभाव: बिहार म...