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    ​रात की रोशनी: आपके दिल के लिए एक अदृश्य खतरा ! ​हालिया वैज्ञानिक शोधों ने एक चौंकाने वाला तथ्य सामने रखा है—रात के समय कृत्रिम प्रकाश (जैसे स्मार्टफोन, टीवी और तेज बल्ब) के संपर्क में रहना केवल आपकी नींद को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि आपके हृदय को गंभीर खतरे में डालता है। ​यह शरीर को कैसे प्रभावित करता है? (वैज्ञानिक कारण) ​हमारा शरीर एक प्राकृतिक सर्कैडियन रिदम  या 'जैविक घड़ी' के अनुसार काम करता है। रात के अंधेरे में, मस्तिष्क मेलाटोनिन  नामक हार्मोन जारी करता है, जो गहरी नींद और हृदय की मरम्मत के लिए आवश्यक है। ​हार्मोनल असंतुलन: रात में कृत्रिम रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन को रोक देती है। इसके अभाव में शरीर तनाव की स्थिति में रहता है। ​रक्तचाप और धड़कन: प्रकाश के संपर्क से रात के समय कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है, जिससे हृदय गति और रक्तचाप  में वृद्धि होती है। ​मेटाबॉलिक रिस्क: शोध बताते हैं कि जो लोग रात में अधिक रोशनी में रहते हैं, उनमें हृदय रोग का खतरा 56% तक बढ़ जाता है। ​प्रमुख चेतावनी संकेत ​रात में देर तक फोन या लैपटॉप का उपयोग करना। ​हल्की रोशनी...

​रात की रोशनी: आपके दिल के लिए एक अदृश्य खतरा !

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   ​हालिया वैज्ञानिक शोधों ने एक चौंकाने वाला तथ्य सामने रखा है—रात के समय कृत्रिम प्रकाश (जैसे स्मार्टफोन, टीवी और तेज बल्ब) के संपर्क में रहना केवल आपकी नींद को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि आपके हृदय को गंभीर खतरे में डालता है। ​यह शरीर को कैसे प्रभावित करता है? (वैज्ञानिक कारण) ​हमारा शरीर एक प्राकृतिक सर्कैडियन रिदम  या 'जैविक घड़ी' के अनुसार काम करता है। रात के अंधेरे में, मस्तिष्क मेलाटोनिन  नामक हार्मोन जारी करता है, जो गहरी नींद और हृदय की मरम्मत के लिए आवश्यक है। ​हार्मोनल असंतुलन: रात में कृत्रिम रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन को रोक देती है। इसके अभाव में शरीर तनाव की स्थिति में रहता है। ​रक्तचाप और धड़कन: प्रकाश के संपर्क से रात के समय कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है, जिससे हृदय गति और रक्तचाप  में वृद्धि होती है। ​मेटाबॉलिक रिस्क: शोध बताते हैं कि जो लोग रात में अधिक रोशनी में रहते हैं, उनमें हृदय रोग का खतरा 56% तक बढ़ जाता है। ​प्रमुख चेतावनी संकेत ​रात में देर तक फोन या लैपटॉप का उपयोग करना। ​हल्की रोशनी या टीवी चलाकर सोने की आदत। ​खिड़की से आने वाली ब...

स्वीकृति की शक्ति: स्वयं से संसार की ओर एक सेतु !

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    ​१. आत्म-केंद्रितता का अंत और 'वस्तुनिष्ठ वास्तविकता' ​मनोवैज्ञानिक रूप से, हम अक्सर अपनी मान्यताओं, पूर्वाग्रहों और इच्छाओं के "बुलबुले" में जीते हैं। इसे संज्ञानात्मक पक्षपात कहा जाता है। 'वस्तुनिष्ठ वास्तविकता'  का सामना करने का अर्थ है उस बुलबुले को फोड़ना। जब हम यह स्वीकार करते हैं कि संसार हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं चलता, तो हम मानसिक तनाव से मुक्त होकर सत्य के साथ जीना शुरू करते हैं। ​२. ब्रह्मांड और मानसिक विस्तार  "दिमाग के बाहर एक पूरा ब्रह्मांड मौजूद है," सामाजिक मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य-ग्रहण  की क्षमता को दर्शाता है। एक परिपक्व व्यक्तित्व वही है जो यह समझ सके कि उसकी अपनी सोच अंतिम सत्य नहीं है। यह अहसास हमें 'अहंकार' से हटाकर 'अनुभव' की ओर ले जाता है। ​३. 'दूसरे की राय' का सामाजिक महत्व ​सामाजिक दृष्टिकोण से, दूसरों की राय को अपने बराबर महत्व देना समानुभूति और लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव है। समाज में संघर्ष तब उत्पन्न होते हैं जब हम अपनी राय को श्रेष्ठ और दूसरों की राय को गौण मानते हैं। स्वीकृति हमें यह...

विनोद कुमार शुक्ल को सूत्रधार की श्रद्धांजलि: "

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  साहित्य के जादुई यथार्थ के एक युग का अंत। ​खगौल। हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष, 'शब्दों के जादूगर' और सादगी के पर्याय विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन पर नाट्य संस्था, सूत्रधार खगौल ने गहरा शोक व्यक्त किया है।  अपने शोक संदेश में ​संस्था के महासचिव नवाब आलम ने कहा, "विनोद जी ने साहित्य की दीवार में अनंत संभावनाओं की एक ऐसी खिड़की खोली थी, जिससे आने वाली ताजी हवा हिंदी जगत को सदियों तक महकाती रहेगी। उन्होंने हमें सिखाया कि कैसे बेहद साधारण और घरेलू शब्दों के माध्यम से मनुष्य के अस्तित्व की सबसे जटिल और असाधारण बातें कही जा सकती हैं।साहित्यकार ​प्रो. प्रसिद्ध कुमार ने उनकी रचनाओं को याद करते हुए कहा कि 'नौकर की कमीज' से लेकर 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' तक, उनकी हर कृति निम्न-मध्यमवर्गीय जीवन की जद्दोजहद उसमें छिपी है। ​  ​इस अवसर पर संस्था के अन्य रंगकर्मी और साहित्य प्रेमी जिनमें विकाश कुमार उर्फ पप्पू,  मुकेश कुमार, सऊद , शमशाद अनवर , शोएब कुरैशी, सामाजिक कार्यकर्ता चंदू प्रिंस, अस्तानंद सिंह रूपेश कुमार, जोगेंद्र यादव,जितेंद्र वत्स,रंजन कुमार, जय प्रकाश मिश्र...

​"साहित्य की दीवार में अनंत संभावनाओं की एक खिड़की हमेशा के लिए खुली छोड़कर, शब्दों के जादूगर विदा हो गए..." 🖋️

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  निराली सादगी और जादुई यथार्थ के अमर रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल जी को भावभीनी श्रद्धांजलि। ​विनोद जी ने हमें सिखाया कि कैसे बहुत साधारण शब्दों में बहुत असाधारण बातें कही जा सकती हैं। 'नौकर की कमीज' से लेकर 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' तक, उनकी हर रचना निम्न-मध्यमवर्गीय जीवन की जद्दोजहद और उसमें छिपी मासूमियत का जीवंत दस्तावेज़ है। ​अंतिम क्षणों में भी हाथ में कलम और कागज की चाह रखने वाला यह मौन साधक, हिंदी साहित्य को एक ऐसा मुहावरा दे गया जो सदियों तक गूँजता रहेगा। ​✨ विश्राम तो शरीर ने किया है, आपकी शब्द-यात्रा तो अब युगों तक चलेगी। ​हैशटैग्स: #VinodKumarShukla #HindiLiterature #विनोद_कुमार_शुक्ल #श्रद्धांजलि #साहित्य #HindiPoetry #Legend #नौकर_की_कमीज #RIP

​भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पूंजी का 'महा-पलायन': अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार, अर्थशास्त्र विभाग।

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    ​हालिया रिपोर्ट के आँकड़े भारतीय पूंजी बाजार की एक डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। वर्ष 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा 1.58 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड निकासी कोई सामान्य लाभ-वसूली नहीं है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढांचे पर गहराते अविश्वास का संकेत है। यह अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी निकासी है, जो यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या 'शाइनिंग इंडिया' का आकर्षण अब वैश्विक निवेशकों के लिए फीका पड़ रहा है? ​निकासी के मुख्य कारण: नीतिगत और आर्थिक विफलता? ​रुपये की ऐतिहासिक कमजोरी: डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार गिरना विदेशी निवेशकों के लिए सबसे बड़ा जोखिम बन गया है। जब मुद्रा का मूल्य गिरता है, तो विदेशी निवेशकों का रिटर्न अपने आप कम हो जाता है। ​अत्यधिक मूल्यांकन (Overvaluation): भारतीय शेयर बाजारों का मूल्यांकन (Valuation) लंबे समय से वास्तविक आय से कहीं ऊपर चल रहा था। अब जब 'बुलबुला' फटने की कगार पर है, तो विदेशी निवेशक अपना पैसा सुरक्षित निकालने में ही भलाई समझ रहे हैं। ​वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव: अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाना और वैश्विक व्यापा...

डिजिटल बचपन: तकनीक के उत्साह में कहीं खो न जाए बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य !

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    ​आज के दौर में डिजिटल उपकरणों को भारत में शिक्षा और उज्ज्वल भविष्य का एक सशक्त माध्यम माना जा रहा है। निःसंदेह तकनीक ने सीखने के नए दरवाजे खोले हैं और सूचनाओं तक पहुँच को आसान बनाया है, लेकिन इस डिजिटल क्रांति के उत्साह में हम बच्चों के मानसिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। ​सिमटता बचपन: मोबाइल ही अब खेल का मैदान ​शहरी जीवन में बदलाव इस कदर आया है कि बच्चों के लिए असली खेल के मैदान अब मोबाइल की स्क्रीन में सिमट गए हैं। चिंता की बात यह है कि अब यह प्रवृत्ति केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं रही, बल्कि छोटे शहरों और कस्बों में भी तेजी से पैर पसार रही है। जहाँ पहले बच्चे गलियों और पार्कों में दौड़ते-भागते थे, अब वे घंटों एक ही जगह बैठकर स्क्रीन से चिपके रहते हैं। ​सीमित होता 'दृश्य संसार' ​तकनीक पर बढ़ती इस निर्भरता का परिणाम यह है कि बच्चों का 'दृश्य संसार' (Visual World) बहुत छोटा और एकरूप होता जा रहा है। वे दुनिया को अनुभव करने के बजाय केवल उसे स्क्रीन पर देख रहे हैं। इससे उनकी रचनात्मकता, सोचने की क्षमता और बाहरी वातावरण स...