सरकार की चाकरी करती मीडिया! बन गयी सरकारी प्रवक्ता! प्रसिद्ध यादव।
बाबूचक ,पटना, बिहार।
मीडिया ही है सरकार की प्रवक्ता!
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया अन्य दायित्व निभाये न निभाये,लेकिन सरकार की भक्ति करने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही है।चुनाव आते ही ये अपना रंग दिखाने लगती है।इधर दो महीनों से एक ही मुद्दे को इतना उठाया कि बाकी देश की मुद्दे गौण हो गए। किसी खबर को बिना जांच पड़ताल किये हुए इसकी हेड लाइन बन जाती है।आमजन के मन मस्तिष्क पर इसके दुष्प्रभाव होते हैं।कैसे एक नेता के जीवन के अंतिम क्षण में भी रिजाइन और दूसरे दलों में जॉइन की खबरें प्रमुखता से चलती रही और ठीक सुबह दिवंगत हो गए।क्या यह मीडिया का दायित्व नही था की सम्बन्धित नेता से बात करें। देश में लाखों किसान आंदोलनरत थे,लेकिन पड़ोसा जा रहा था कंगना।देश में मंदी और महंगाई चरम सीमा पर है,दिखाया जा रहा है एक्जिट पोल।युवा रोजगार के लिये आंदोलन कर रहे हैं,दिखाया जा रहा है,सबका साथ,सबका विकास, बेचे जा रहे हैं सरकारी उपक्रम,दिखाया जा रहा है 70 साल बनाम 6 साल।मीडिया समीक्षा कर यह बताती की सरकार ने जो वादे किए थे वो कितना पूरे हुए।अगर नही तो क्यों?ये सही मायने में जनता की आवाज होती,लेकिन ये बताती है होटवार जेल की कैदी संख्या, विपक्ष के नेता की डिग्री आदि।अगर कोई मीडिया के स्पेस को गौर से देखे तब 80 फीसदी स्पेस सरकार की उपलब्धियों से भरी हुई है और 20 फ़ीसदी में देश दुनिया की खबर रहती है।अभी गया के लोंग भुइयाँ द्वारा 3 किमी आहर की खोदाई की गई पटवन के लिये।कोई मीडिया गया कि ही कृषि मंत्री से नही पूछा की यह सरकार की अकर्मण्यता नही तो और क्या है?सरकार जब विकास के प्रति ततपर रहती तब भुइयाँ को 30 साल से आहर क्यों खुदना पड़ता।ऐसे ही अनेक ज्वलंत उदाहरण है जो मीडिया जानबूझकर नेपथ्य में धकेल दी है और अपने स्वामी को खुश रखने के लिये सिर्फ और सिर्फ चाकरी कर रही है।
प्रसिद्ध यादव।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया अन्य दायित्व निभाये न निभाये,लेकिन सरकार की भक्ति करने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही है।चुनाव आते ही ये अपना रंग दिखाने लगती है।इधर दो महीनों से एक ही मुद्दे को इतना उठाया कि बाकी देश की मुद्दे गौण हो गए। किसी खबर को बिना जांच पड़ताल किये हुए इसकी हेड लाइन बन जाती है।आमजन के मन मस्तिष्क पर इसके दुष्प्रभाव होते हैं।कैसे एक नेता के जीवन के अंतिम क्षण में भी रिजाइन और दूसरे दलों में जॉइन की खबरें प्रमुखता से चलती रही और ठीक सुबह दिवंगत हो गए।क्या यह मीडिया का दायित्व नही था की सम्बन्धित नेता से बात करें। देश में लाखों किसान आंदोलनरत थे,लेकिन पड़ोसा जा रहा था कंगना।देश में मंदी और महंगाई चरम सीमा पर है,दिखाया जा रहा है एक्जिट पोल।युवा रोजगार के लिये आंदोलन कर रहे हैं,दिखाया जा रहा है,सबका साथ,सबका विकास, बेचे जा रहे हैं सरकारी उपक्रम,दिखाया जा रहा है 70 साल बनाम 6 साल।मीडिया समीक्षा कर यह बताती की सरकार ने जो वादे किए थे वो कितना पूरे हुए।अगर नही तो क्यों?ये सही मायने में जनता की आवाज होती,लेकिन ये बताती है होटवार जेल की कैदी संख्या, विपक्ष के नेता की डिग्री आदि।अगर कोई मीडिया के स्पेस को गौर से देखे तब 80 फीसदी स्पेस सरकार की उपलब्धियों से भरी हुई है और 20 फ़ीसदी में देश दुनिया की खबर रहती है।अभी गया के लोंग भुइयाँ द्वारा 3 किमी आहर की खोदाई की गई पटवन के लिये।कोई मीडिया गया कि ही कृषि मंत्री से नही पूछा की यह सरकार की अकर्मण्यता नही तो और क्या है?सरकार जब विकास के प्रति ततपर रहती तब भुइयाँ को 30 साल से आहर क्यों खुदना पड़ता।ऐसे ही अनेक ज्वलंत उदाहरण है जो मीडिया जानबूझकर नेपथ्य में धकेल दी है और अपने स्वामी को खुश रखने के लिये सिर्फ और सिर्फ चाकरी कर रही है।
प्रसिद्ध यादव।
Comments
Post a Comment