मनीषा वाल्मीकि हम शर्मिंदा हैं!झूठी है 'बेटी बचाओ' की स्लोगन!प्रसिद्ध यादव के साथ शेयर करें।हृदय को झकझोर देने वाली आलेख।

  बाबूचक, पटना,बिहार ।

हाथरस की घटना से डूब मरो!

किस बेटी को बचाने की बात ढोंगी करता है ? दलित की इज्जत और जान आज भी कितना सुरक्षित है? हाथरस की घटना ने साबित कर दिया है।21 वर्षीया मनीषा वाल्मिकी 700 ऊंचे लोगों के गांव में मात्र 15 घर दलित सुरक्षित नही रह पाई।नोच डाला गिद्धों और कुत्तों के मनबड़ू शोहदे ने।मनीषा के साथ अमानवीय अत्याचार की पराकाष्ठा है।चार रईसजादों ने दुष्कर्म किया,जीभ काट डाली, रीढ़ की हड्डी तोड़ी और गला दबा दिया ।और तो और एक आरोपी का दुःसाहस देखिये की लड़की के भाई से कहता है की," खेत में तेरी बहन मरी पड़ी है,जा उसकी लाश उठा ला।" उस गांव में दलित बच्चीयों के साथ छेड़खानी करना मानो मौलिक अधिकार मिला हुआ है।अगर कोई थाने में रपट लिखाने जाता तब कोई डर से रपट नही लिखता है।कितना असंवेदनशील समाज है? क्या दलित होना इतना गुनाह है?किस लोकतंत्र और हिन्दू समाज की बात करते हैं. सच तो यह है की भारतीय समाज की ज़मीर अभी जगी नही है।लोगों की संवेदनशीलता शून्य होती जा रही है।या ये समझकर घर में मुँह छुपा कर बैठे हैं कि जब अपनी बारी आएगी तब सोचेगे।अगर यही कायरता रही तब वो दिन भी दूर नही जब खुद आपबीती बतानी पड़े।आखिर इतना दुःसाहस शोहजादों को क्यों?न पुलिस की न प्रशासन की भय न पीड़ितों से डर है।अगर एकबार दृढ़ संकल्प लें तो ऐसे शोहजादों को देश में कहीं ठौर नही मिलेगी,लेकिन सत्ता की चाकरी करने से आजद हो तब न!सभी को भूख है विलासिता की ,दमन को दबाने के लिये संघर्ष करे तब न!मीडिया अपना स्वामिभक्ति दिखा रही है,इस घटना के लिये न स्पेस होगी न समय।कौन बताएगा आततायी की करतूत को,कौन जलाएगा मोमबत्तियां ?घटना दलित की बेटी के साथ जो हुई है!
प्रसिद्ध यादव।😢

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