ईमानदार व चरित्रवान को चुनें जनप्रतिनिधि! प्रसिद्ध यादव के साथ शेयर करें।



 बाबूचक, पटना।

लोकतंत्र को भीड़तंत्र नहीं,नीति तंत्र बनाएं।

ये जिम्मेवारी राजनीति दल और मतदाता की है।भेड़िये की चाल से हो सकता है कई लोग विजयी हो जायें, लेकिन नतीजा?जिसके पास कोई अपना विज़न नही हो,चाल चरित्र न हो,उसके गले में विजयी की हार पहनाने से क्या मिलेगा?उत्सव इसलिए न मनाएं की कोई स्वजातीय जीत गया,बल्कि इसलिए कि कोई अच्छा आदमी जीत गया।अब अच्छा बुरा का पहचान क्या है? सीधा जवाब है की आप अपने संतान को कैसा बनाना चाहते हैं?चोर,उचक्का,अपराधी,अनपढ़,ज़ाहिल, गंवार ,संस्कारहीन, उदंड!जवाब होगा नहीं।फिर जनप्रतिनिधि ऐसा क्यों?लोगों के साथ हुजूम देखकर,भीड़ देखकर या स्वजातीय समझ कर?अगर कोई भी ऐसी मानसिकता रखते हैं वो निश्चित रूप से लोकतंत्र की गला घोंट रहे हैं।राजनीति नीति से चलती है,भले ही ऊपरी दिखावा में यह न लगे,लेकिन अंदर से बिना नीति के एक कदम नहीं चल सकते।प्रौढ़ लोकतंत्र में अनेक उठापटक देखे,लेकिन लोग हवा की तरह आये और चले गये।नेता होने की गुण बिरले में होती है।हम विधायक, सांसद को नेता होने की भूल कर लेते हैं।नेता बिना पद के भी लोग बने हैं।लोकनायक जयप्रकाश नारायण ,मदर टेरेसा, विनोबा भावेऔर महात्मा गांधी कभी जनप्रतिनिधि नहीं बने,लेकिन आज के कोई विधायक, संसद उनके व्यक्तित्व के मुकाबला कर सकता है क्या? अच्छे लोगों को चयन करें।यह अवसर पांच सालों पर आते हैं।अवसर का सदुपयोग करना ही बुद्धिमानी है।
प्रसिद्ध यादव।

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