वोटर,कार्यकर्ता जानें अपनी हैसियत,तब नेता देखे दिन में तारे।जाड़े में भी छूटे पसीने।प्रसिद्ध यादव के साथ शेयर करें।
बाबूचक, पटना।
नीतीश 77 में तो श्याम रजक 90 में टिकट लेकर पराजित हुए थे।
लालू,राबड़ी,अटल,इंदिरा गांधी ,राहुल भी हो चुके हैं पराजित।
टिकट मिलना ही सफलता की गारंटी है क्या? आज जो टिकट के लिये राजनीति दलों में टिकट के लिये सर फुरौअल हो रहा है,बोली लग रही है,जुगाड़ लग रहा है।टिकट ही सबकुछ है क्या? नेता जितना टिकट के लिये मसक्कत करते हैं,उतना क्षेत्र के विकास के लिये करते तब कोई बिना राजनीति दल के टिकट के भी जीत जाते हैं और कोई हवा होने के बावजूद भी हवा में उड़ जाते हैं।दलगत टिकट मिलने का फायदा होता है की बैठे बैठाये हजारों कार्यकर्ता मिल जाते हैं,दल के प्रति प्रतिबद्धता ही टिकटार्थी को जीत आसान बना देता है।कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता की कीमत राजनीति दल उम्मीदवारों से टिकट के लिये करोड़ो के डील होता है।यही कार्यकर्ता के बदौलत पार्टी के विधायकों की संख्या बल बढ़ाता है और यही संख्या बल सरकार, एमएलसी,राज्य सभा भेजती है।इसका शुद्ध मुनाफ़ा किसे होता है?शीर्ष नेतृत्व को और कार्यकर्ता छोटे छोटे काम के लिये जनप्रतिनिधियों से चिरौरी करते रहते हैं।कार्यकर्ता अपनी हैसियत को समझते नही है।अगर कोई उपेक्षा करे तब आप भी उसे दफ़न कर दें।फूल की चाहत है तब कांटों से प्यार करना सीखें।
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