भ्रष्टाचार को ढोती रेल-प्रसिद्ध यादव
दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल नेटवर्क के विकास के साथ देश में आर्थिक तरक्की का लम्बा सफर रहा है ,लेकिन कुछ वर्षों में यह घाटे में चली गयी है। मेट्रो मैन ई श्री धरण का मानना है की हर साल भारतीय रेल में 10 हजार करोड़ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। केंद्रीकृत खरीददारी पर रोक लगा दी जाये तब इतनी राशि की बचत हो जाएगी। भारतीय रेल में घाटे की बात सर्वविदित है। खरीद अधिकार सीमित होने के कारण रेलवे का बहुत पैसा महज कुछ हाथों में है ,जिससे भ्रष्टाचारी को बढ़ावा मिलता है। रेलवे करीब हर साल खरीददारी में 1 लाख करोड़ खर्च करती है ,जिसमें आधी रकम रेलवे बोर्ड द्वारा होती है। रेल सबसे ज्यादा डीजल ,कंक्रीट ,सीमेंट आदि हैं। रेलवे में बहाली प्रक्रिया से लेकर मेडिकल में फिट अनफिट के खेल भी खूब होते हैं। जबसे रेल में निजीकरण की शुरुआत हुई है तब से रेल अधिकारीयों के बांछे खिल गयी है। भ्रष्टाचार की दीमक हमारी सारी व्यवस्था को चौपट कर दिया है। ऐसे देश में छोटी इकाई पंचायत से लेकर शीर्ष स्तर के कार्यालयों में भ्रष्टाचार की धाक है ,बिना रिश्वत के फाइलें नहीं सरकती है। यही कारण है की एशिया में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भारत में है। 180 देशों की सूचि में भारत इस साल 3 पायदान में सुधारकर 79 पायदान पर है। चुनाव में कितना बेहिसाब धन बहाया जाता है ,हर कोई जानता है। यह सारा धन किन स्रोतों से जुटाया जाता है। ऐसे में भ्रष्टाचार पर कैसे अंकुश लग पायेगा .? भ्र्ष्ट होते समय देश के उन साधनविहीन लोगों की तस्वीर भी एकबार जरूर देखें जो आज भी खुले आसमान में आधे पेट खाकर देश की सेवा निष्ठां से करते हैं। ,जबतक जिम्मेवार लोग नैतिक रूप से संबल नहीं होंगे,देश के प्रति निष्ठावान नहीं होंगे तबतक भ्रष्टाचार मिटने वाली नहीं है.. माना की इससे निपटने के लिए हमारे पास कानून हैं,लेकिन इनका डर अभी नहीं है। अभी और सख्त कानून बनाने की जरूरत है।
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