कुर्सी पकड़ की बजट कथा ।प्रसिद्ध यादव के साथ।

 बिहार बजट में सरकार की उपलब्धि, दूरदर्शिता और आंकड़े देखकर लगा की  कितना विकसित हो गया बिहार!

रोजगार, भ्रष्टाचार, अफसरशाही, शौचालय, सृजन घोटाले  आदि  के जांच की प्रगति विधानसभा पटल पर रखे जाते ,तब सरकार की नीति और नियत समझ में आती।शेल्टर होम की दुर्गति की चर्चा हो जानी चाहिए थी।शराबबंदी कितनी सफल है,इसकी चर्चा होनी चाहिए थी।शेरो शायरी हुई,शराब पीकर मरने वाले पर भी मातम मनाना चाहिए था।कृषि क्षेत्र की उत्पादकता, विकास के लम्बी कहानी सीएम द्वारा बताई गई।फिर ये कृषि बिल क्यों? बिहार मॉडल,कृषि रोड मैप क्यों नही अपनाई जाती? जैविक खेती, खाद पर लम्बी लम्बी  बातें,फिर खाद की कालाबजारी क्यों? महंगाई पर तो सांप सूंघ गया।अब बजट को दबे कुचले वालों के लिये बता रहे हैं,जो सदियों से कुचलने के प्रयास किया।क्या हास्यास्पद नही लगता? हाँ, इसे बिहार बजट न कहकर नालंदा बजट कहते तो युक्तिसंगत होता।अपने आप को महामानव घोषित करने में कोई चूक नही कर रहे,लेकिन जनता समझती नही और बेचारे को गिरते पड़ते कुर्सी पकड़ने के लिये तड़पते दृश्य दिखाते रहती है। महामानवों को कद्र होनी चाहिए।


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