कितना लाचार हो गया मानव! प्रसिद्ध यादव।

 


धरती के सबसे  बुद्धिमान, सभी को अपनी उँगलियों पर नाचने वाला, एक दिन इतना लाचार बेवस्, असहाय हो जायेगा। कभी कोई सोचा न होगा। थोड़ी सी परेशानी होने पर, पड़ोसी से लेकर, मित्र, रिश्तेदार दौड़े दौड़े आते थे, आज सबकी जान की लाले पड़ी हुई है। राजा रंक, पुजारी, भिखारी, धनवान, निर्धन, बलशाली, बलहीन सभी सलामती की दुआ कर रहे हैं। दुनिया को अपनी दिमाग से नापने वाले चरदीवारी में कैद हो गए, रफ़्तर थम गयी। कभी घने जंगलों से गुलजाए रहती थी धरा,  चहकती थी चिड़ियाँ, हरा भरा, शस्य श्यामला, कंद मूल फल, औषधि यां अनंन्त, जीवन रक्षक प्राण वायु मिलते थे, आज खुद को विकसित समझने वाला मानव प्रकृति को नष्ट कर दिया, उसका दुष्परिणाम सामने हैं, पत्थरों की ढेर से महल खड़ा कर दिया, विलासिता सम्बन्धी जितने भी जतन थे उपाय कर लिए, लेकिन यह समझ नहीं है कि ये मौत की व्यापार हो रही है। जीवन पानी की बुलबुला से भी कम आयु की हो गयी है। हे मानव! अभी से भी लौट जाओ पुरातन की ओर, जंगलों, गांवों की ओर, जहाँ प्रकृति ने अनेक अनुपम उपहार लिए खड़ा है, जीवन सुरक्षित और तानावमुकत् होगी। प्रकृति के महत्व को समझो, इसका दोहन् करना बन्द करो नही तो एक दिन अस्तित्व मिट जायेगी तो कोई आश्चर्य नही होगा? 

प्रसिद्ध यादव। 

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