पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को जाना दुनिया के लिए अपूर्णीय क्षति! प्रसिद्ध यादव
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण की वजह से निधन हो गया । देश दुनिया को अपूर्णीय क्षति हुई। आज दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है, लोगों को पर्यावरण का महत्व समझ आने लगा। पेंड हमारे मित्र हैं, ये बात मजाक लगती थी, लेकिन कैसे ऑक्सीजं के बिना लाखों साँसे रुक गयी, समझ आ गयी। बहुगुणा का संपूर्ण जीवन इसी में लगा रहा और जाते जाते इस विपदा में अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से जीने की राह बता दिया।
13 वर्ष की उम्र में शुरू हुआ राजनीतिक सफर
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी बहुगुणा ने 13 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक सफर की शुरुआत कर ली थी। वर्ष 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से बहुगुणा की मुलाकात हुई। यहीं से उनका आंदोलन का सफर शुरू हुआ। मंदिरों में दलितों को प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए प्रदर्शन करना शुरू किया। समाज के लोगों के लिए काम करने हेतु बहुगुणा ने 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से बहुगुणा ने पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना की।
1970 में की चिपको आंदोलन शुरुआत
सुंदरलाल बहुगुणा का मानना था कि पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना हमारे जीवन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए उन्होंने 1970 में गढ़वाल हिमालय में पेड़ों को काटने के विरोध में आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का नारा - “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार” तय किया गया था। वर्ष 1971 में शराब दुकान खोलने के विरोध में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। इनके जिद्दी स्वभाव ने सरकार को कई बार गैर जनूपयोगि निर्णय से पीछे हटनी पड़ी।
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा
पर्यावरण के क्षेत्र में बहुमूल्य काम करने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा को वर्ष 1981 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था। किंतु उन्होंने यह पुरस्कार लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि जब तक पेड़ कटते रहेंगे, तब तक मैं इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं कर सकता।
प्रसिद्ध यादव।
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