विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के बिना तरक्की असम्भव! प्रसिद्ध यादव

 


इक्किस्वी सदी को विज्ञान का युग कहा जाता है। यानी किसी भी बातों को, पूछताछ, भौतिक वस्विकता का अवलोकन, परीक्षण, परिकल्पना, विश्लेषण से सत्यता को जानना है। चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक स्वभाव का अंग है। इस अवक्यांश का उपयोग करने वाले नेहरू थे। भारतीय संविधान की धारा 51 - A(H) के अनुसार  वैज्ञानिक प्रवृति, मानवता और सवाल तथा सुधार की भावना का विकास करना  हर नागरिक का   दायित्व है। 

प्रकृति के  क्रम बध्  अध्ययन से प्राप्त और  प्रयोगों  के निष्कर्ष  द्वारा प्रमाणित  किये गये ज्ञान को ही विज्ञान कहते है।यूरोप चीन और भारत की सभ्यता से 500 वर्ष पीछे है, लेकिन   वैज्ञानिक सोच के सामने कहाँ पहुँच गया! आजादी से पूर्व हमारे यहाँ सीवी रमण, भाभा, जगदीश चंद्र बोस, मेघनाथ साह  आदि ऐसे वैज्ञानिक हुए जो विश्व  को अपनी उपहार दिया। आजादी के बाद विशेश्वरैया, मिसाइल मैन कलाम साहब, जयंत नारलकर, सिएन राव, यशपाल, सीए भार्गव विज्ञान को बढ़ावा  देते रहे। आज  प्रतिष्ठित इंजिनियरिंग और मेडिकल कॉलेज से पढ़कर ताबीज, लोकेट, टोना टोटका, आडम्बर, अंधविश्वास से बाज नही आ रहे हैं तब साधारण व्यक्ति की बात क्या करें? राटा मारकर पढ़ने से नही बल्कि वैज्ञानिक सोच की जरूरत है।  पत्रकारिता कॉलेजों में भी   वैज्ञानिक पत्रकारिता पढ़ाने की जरूरत है, ताकि किसी घटना, दुर्घटना पर   विज्ञानिक तरीके से खबर आये। किसी भी बीमारी, महामारी से निपटने में विज्ञान ही सहारा है, न की झोलेछाप किसी वैध, हकीम की। पोलियो से पूरी दुनिया ग्रसित थी, लेकिन इंग्लैंड ने अपनी  इसी पद्धति से देखा की गाय पालने वाले इससे सुरक्षित है,, क्योंकि गाय में इसकी एंटीबॉडी बन गयी थी और फिर उसी  से वैक्सिन बनी और आज दुनिया इससे मुक्त है। कोरोना की वैक्सिन् में भी खूब अफवाह फैला हुआ है, जो घातक है। धार्मिक संस्कारों में भी विज्ञान का समावेश है, लेकिन इसमे केवल एक ही पक्ष को जानते हैं, नतीजा यह आडंबर और धंधा बन गया है। आज हम मोबाईल, कंप्यूटर, लैपटॉप चलाते हैं, लेकिन सोच आडम्बर वाला है तब कैसे भारत आत्मनिर्भर, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, विकसित देश आदि बनेगा। 

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