महान समाजवादी, स्वतंत्रता सेनानी चंदा पुरी!प्रसिद्ध यादव।

  





आर एल चंदा पुरी को राममनोहर लोहिया गुरु जी कहते थे।1942 में सचिवालय में झंडा फहराने के लिये सबसे पहले चारदीवारी फांद कर यही गये थे। ये पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए नेहरू, मोरारजी देसाई से लेकर जेपी से मिलते रहे, लेकिन सभी ने धोखा दिया था। समाजवादी नेता मधु लिमये ने तो पिछड़े की त्याग और बलिदान पर लोहिया के सामने सवाल खड़ा कर दिया था, तब चंदा पुरी ने प्रतिवाद करते हुए कहा था की आजादी की जंग में 70 फीसदी पिछड़े जेल में बंद थे।1977 में कर्पूर ठाकुर जेपी के दबाव में आरक्षण के लिये आनाकानी करने लगे तब  पटना में लाखों की बीच में चंदा पुरी ने कहा था- जो लोग पिछड़े जातियों को आरक्षण से वंचित कर देश की प्रगति को रोकना चाहते हैं, उन्हें समुद्र के गहरे पानी में फेंक कर डूबो देना चाहिए।  11 अप्रैल 1977 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई  कालेकर आयोग की सिफारिश लागू करने की शपथ लेकर सत्ता में आई, लेकिन देसाई ने मुंगेरीलाल के हसीन सपने की कहावत तब से चरितार्थ कर दी और मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिश का प्रश्न खड़ा कर दिया। 6  नवंबर 1951 को अम्बेडकर को पटना गांधी मैदान में शोषितों, पिछड़ों की सभा करवाया था, बाबा साहब बोलने के लिए खड़े हुए और बिजली गुल कर दी गयी और इनकी हत्या के नियत से ईंट , पत्थर फेंके जाने लगे। इनके बचाव में चंदा पुरी के अंख में चोट लग गयी और खून बहने लगी थी। जब चंदा पुरी पिछड़े वर्ग के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब बिहार में बीपी मंडल को यहां के अध्यक्ष बनाये थे।1946 में मसौढ़ी के नोवाखाली में भीषण दंगे हुए थे, गांधी जी को वहां ले गये थे और दंगे रुकवाए।

 ऐसे महान त्यागमूर्ति का जन्म पटना जिला के मसौढ़ी में इनके ननिहाल वसुंहा में हुआ था, पैतृक घर बगल में चंदा पुर था। इनके पिता महाबीर सिंह खलीफा माता हीरामणि कुंवर  थे। ये कुर्मी परिवार से त्याग के मूर्ति थे।ये बाला जी राव के छठे पीढ़ी थे। इनकी शादी महाराष्ट्र में एक डॉ की बेटी सरस्वती से हुई थी।आज इन्हें गुमनाम बना दिया। हमें अपने पुरखों पर गर्व करना चाहिए।

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