तस्वीरेँ देख आंखें भर आईं!निर्लज्ज कहता कि ऑक्सीजन से कोई मरा ही नहीं! प्रसिद्ध यादव।

 



हम मानव हैं और हमारी मानवीय संवेदना ही मानव बनाये हुए है। भले किसी से हमारा कोई संबंध न हो, लेकिन पीड़ा देखकर हृदय द्रविड़ हो जाता है। आज आंध्रप्रदेश के नंदलूर के एक मार्ट में गया। पहले भी जाता था, तब दुकान चलाने वाले कोई और होते थे, मेरी नजर उन्हीं को ढूंढ रही थी कि दुकान में पिता पुत्र दोनो की तस्वीरेँ टंगी हुई थी और उसपर फूलमाला चढ़े हुए थे और युवती अगरबत्ती दिखा रही थी। मैं समझ गया उस महिला से पूछा और फफक कर बोलने लगी- भैया! चार महीना पहले कोरोना से गुजर गए। एक महीना किम्स हैदराबाद में icu में इलाज करवाया 42 लाख खर्च हुए, लेकिन कोई फायदा नही हुआ।पति के देहांत के बाद श्वसुर भी एक महीने बाद हार्ट अटैक से चले गए।अब घर में कोई नही, कोई संतान भी नहीं है। खुद दुकान चलाती हैं और सहारा के लिये एक अपाहिज पिता। कहाँ सरकार थी और इसकी सिस्टम थी, बड़े बड़े दावे करने वाले मृतकों की संख्या सरकार की एक संख्या और आंकड़े भर हो सकती है, लेकिन जिसके जीवन में अंधेरा छा गया हो, उसे आत्मनिर्भर भारत क्या सम्बल दे सकती है? ये एक बानगी है कोरोना ने लाखों परिवारों को बर्बाद कर दिया और बेशर्मी सरकार कहती है कि ऑक्सीजन के अभाव से कोई नही मारा और अंधे लोग मानकर ताली भी बजा रहे हैं।निक्कमी और निर्दयी सरकार को एक मिनट भी रहने का नैतिक हक नही है।

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