व्यंग के हस्ताक्षर काका हाथरसी- प्रसिद्ध यादव@A P

 

    

   रिश्वतरानी धन्य तू, तेरे अगणित नाम
हक, पानी, उपहार औ’ बख्शिश, घूस, इनाम
बख्शिश, घूस, इनाम, भेंट, नजराना, पगड़ी
तेरे कारण ‘खाऊमल’ की इनकम तगड़ी
कहँ काका कविराय, दौर-दौरा दिन दूना
जहाँ नहीं तू देवि, महकमा है वह सूना
इसके महत्त्व और लाभ का प्रतिपादन इन शब्दों में किया गया है :
जिनको नहीं नसीब थी, टूटी-फूटी छान
आज वहाँ भन्ना रही, कोठी आलीशान
कोठी आलीशान, भिनकती मुँह पर मक्खी
उनके घर में घूम रही चाँदी की चक्की
कहँ काका कवि, जो रिश्वत का हलवा खाते
सूखे-चिपके गाल, कचौड़ी-से हो जाते।
         

 18 सितम्बर सन 1906में हाथरस में जन्मे काका हाथरसी (असली नाम: प्रभुलाल गर्ग) हिंदी हास्य कवि थे। उनकी शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। काका आडम्बर, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार आदि पर अनेक व्यंग रचना किये थे।

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