वंचितों को राष्ट्रीय दल बनाने की जरूरत है। प्रसिद्ध यादव


      जब सोनिया गांधी को विदेशी कहकर बेइज्जत किया जा रहा था, तब लालू यादव बचाव किया था।जब नीतीश को छाती तोड़ने की बात बिगड़ैल ने किया था, तब लालू यादव ही आगे आये थे, लेकिन मिला क्या? केवल धोखा!

कोंग्रेस भाजपा कभी भी राजद सपा के भरोसेमंद नहीं।

अगर कॉंग्रेस राजद से अलग होती है तो कोई आश्चर्य नहीं है। अगर ये गठबंधन विधानसभा चुनाव से पहले  टूट जाता तो आज राजद की सरकार रहती।जैसे जदयू भाजपा से असहज महसूस करती है, वैसे ही राजद  कोंग्रेस से असहज ही नहीं रहती , बल्कि ब्रेकर भी थी। बसपा भी भाजपा से दोस्ती कर के देख ली है ।सपा भी कोंग्रेस से दोस्ती कर के देख ली है। यह भारतीय राजनीति की विडंबना ही कहे कि देश में 80 फीसदी गरीबों की आबादी है, लेकिन अबतक कोई भी इसकी कारगर राष्ट्रीय पार्टी नही बन पाई। पक्ष या विपक्ष में कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस और यही दोनो दलों के छोटे छोटे दल चाकरी करते रहते हैं। 1977 और 1989 में गैर कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन असमय दोनों सरकारें पूंजीपतियों की भेंट चढ़ गई।2014  से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी हुई है, जो पूंजीपतियों की कठपुतली बनी हुई है। भाजपा और कोंग्रेस दोनों के राजनीति चाल चलन एक ही जैसा है। देश के 90 फीसदी वालों को एक वैकल्पिक राष्ट्रीय दल बनाने की जरूरत है और राष्ट्रीय चेतना जगाने की भी जरूरत है।

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