पैसा नाच नाचता है! मुद्रविहीन ,राजनीति विहीन! प्रसिद्ध यादव

    

लोकतंत्र  में धनतंत्र  हावी !

कदम -कदम पर पैसा है।नेता से ज्यादा पैसा बोलता है।  चुनाव  लड़ने  के लिये पैसा,जीतने के लिये  पैसा।पैसा ही पैसा।अब सरजमीं पर कितना काम होगा?जनता से कितना भावनात्मक लगाव होगा?पैसों से वोट खरीदे जाते हैं,लोग बिकते हैं।कुछ बिकने के लिये मंडी सजा के बैठे हैं।बोलियां लगती है ,जितना लम्बा भकाभक कुर्ता पायजामा उतना कीमत ।जितने बड़े जानकर,उतनी पूछ।ये सब ड्रामा चुनाव तक।जीतने के बाद फिर कहाँ?भर चुनाव सरदार जी के लंगड़ भी फेल है।कुछ नेता बड़े बड़े होटल बुक करवाये हुए हैं,नेता जी से मिलिये, कूपन लीजिये और होटल के आतिथ्य स्वीकार कीजिये। खुलयाम शराब बन्द है नही तो अजब गजब ब्रांड की फरमाइश होती कि नाम सुनकर चकरा जाते।चवनि अठनी टाइप के लोग की खूब चलती है।कौन जीतेगा, कौन हारेगा,यह भी पैसा ही पूर्वानुमान करेगा।जिसका खाओ,उसका गाओ।हाथ सुख जाए,तब दूसरे दरवाजे पर जाओ।दबा के खाओ,नही हो तब घर के लिये छन्ना भी ले जाओ।चुनाव में टकसाल के मुंह खुल जाता है,जिसकी जितनी बड़ी झोली,उतनी आमद।एटीएम बाबा,टकसाल बाबा, आदि नाम चुनाव में ऐसे ही पड़ता है,गुण दोष के आधार पर नामकरण होता है।पैसों की बरसात होती,सुबह शाम दिनरात होती।घर में सटक के मत रहिये, बाहर घूमिये और देखिए कैसे मदारी हो रहा है, आंख खुला डब्बा गोल! बोल रे भाई हल्ला बोल!

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