मत चल पीछे पीछे भेड़ियों की तरह! प्रसिद्ध यादव।
मत चल पीछे पीछे
भेड़ियों की तरह
कभी इधर, कभी उधर।
मृग तृष्णा से कभी किसी की
प्यास बुझी है क्या?
पहचान अपनी वजूद
अपनी अस्तित्व को
बन भविष्यदृष्टा
रखो दूरदृष्टि
मिटाओ दृष्टिदोष
पशु पंक्षी भी पहचानते
अपने हित अनहित
तू तो मानव श्रेष्ठ हो।
जो समझा है अपनी जागीर
हस्ती मिटा दे उसकी
छोड़ के इधर उधर
पकड़ अपनी डगर।
कभी इधर , कभी उधर।
चंद रुपयों की लालच में
ज़मीर बेच देते हैं लोग यहां
मत कर उम्मीद उससे नैतिकता की
मन की पवित्रता की
अपनी स्वतंत्रता की
स्वच्छन्दता की।
जो घर से बेघर किया
कतरे कतरे खून का चूस लिया
चंद पैसों के लिए जलील किया
अपमान का घूंट दिया
दहशत, ख़ौफ़ का मंज़र दिया।
कभी इधर, कभी उधर।
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