आज पिता जी की 26 वीं पुण्यतिथि है। प्रसिद्ध
25 दिसम्बर 1995 को दानापुर रेलवे अस्पताल में दिन के करीब 12 बजे पिता जी हम 6 भाइयों एवम एक बहन को सदा के लिए छोड़ गये थे। आपके बिना जो जीवन में रिक्त हुआ, सुनापन हुआ, विरक्ति हुई, मन वैरागी हुआ, कभी मैं दिल से खुश नही हुआ, जीवन में दुखों पहाड़ टूट गया, काली घटाएं छा गई। आपकी यादें आंखों में आँसू ला देते हैं। आपके बिना कोई सर पर हाथ रखने वाले नही है।इस विषम परिस्थिति में हम और माँ साथ थे। कड़ाके की ठंड में जेयष्ठ पुत्र होने के नाते मैं काफी तनाव और मर्माहत था। आंखों के सामने अंधेरा , लगा अब कुछ शेष नही बचा। लेकिन यह शाश्वत है, सत्य है, इसे कौन टाल सकता है। आप दैहिक स्वरूप में हमारे पास नहीं हैं, लेकिन आपकी सीख, ईमानदारी, स्पष्टवादिता, अनमोल ज्ञान, गीत संगीत से बेहद लगाव, आपके फैसले के हमलोग कायल हैं।आपके मेरे प्रति लगाव , प्रेम मेरा सौभाग्य था। यही कारण है कि मेरा बचपन किसी राजकुमार से कम न था, कभी अभावग्रस्त नही रहे और आपके शिक्षा के प्रति लगाव ही मुझे उच्च शिक्षा ग्रहण करवाया। आप कभी अन्याय , जुर्म को बर्दाश्त नहीं किया, तो कभी किसी के दिल नही दुखाया, आपके दरवाजे से जरूरतमंद कभी खाली नही लौटा था। आपकी कृत्य आज भी दिखाई पड़ती है। आपकी अनुशासन प्रियता की हम रचना हैं। हम कभी जाने भी नहीं कि पिता पुत्र को कभी पीटते भी हैं। आपसे उऋण होना असंभव है, फिर भी आप मेरे हृदय में रहते हैं, मेरी अगाध श्रद्धा है।पूरे रेलवे में सेवा के दरम्यान एक दिन का भी सीक नही लेना और एबसेंट नही होना, समय से पहले डियूटी पर जाना और सबसे बाद में आना एक अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय था, लेकिन ऐसा ही थे आप। सेवानिवृत्त प्रमाणपत्र में यह दर्शाया गया था और अधिकारियों ने आपकी प्रशंशा में ये बात कही थी। आप तीन भाइयों में ज्येष्ठ थे, परिवार के सभी सदस्य आपकी इज्ज़त करते थे और आप सभी पर अपना प्यार लुटाते थे। आप जैसे होना दुर्लभ है। आपको कोटि कोटि नमन!
आपका प्रसिद्ध एवम समस्त परिजन, सम्बन्धी, मित्र।
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