मालिक !बेटिया के लौटा दी ! ( कहानी) - प्रसिद्ध यादव।

   



 जुगनी पर दबंगों की नजरें गिद्ध की तरह रहती थी और फिराक में रहता था कि कब मौका अकेले में मिले की अपनी हवस बुझा लें। दबंग जानते थे कि जुगनी के घर में शौचालय नही है। सरकार की रिकॉर्ड में शौचालय का निर्माण किया गया है, लेकिन यह सारा पैखाना सुशासन की मुंह में चला जाता है।जुगनी शाम में शौच के लिए घर से बाहर गयी। पहले से घात लगाए दबंग रोहन सिंह अपने कब्जे में लेकर घर आ गया। रोहन के घर में सभी परिवार थे, लेकिन किसी ने इस जोरजबरदस्ती का विरोध नही किया, क्योंकि दबंगों के यहां यह दानवीय काम पहली बार नही हो रहा था। इसके यहाँ देश का कानून नही , अपनी मर्जी की कानून चलती है। सरकार से भी किसी तरह का डर भय नहीं था, क्योंकि सरकार के नुमाइंदे को इन राजदरबार में खूब खातिर होती है। स्थानीय पुलिस , प्रशासन भी सलामी ठोकते रहते हैं और सदा नतमस्तक रहते हैं। अब ऐसे में भला दबंगों के मन क्यों न बढ़े? देर तक जुगनी घर वापस नही आई तो उसकी माँ खोजने गयी, तब मालूम हुआ कि गांव के ही दबंग मालिक के बेटा रोहन सिंह उठा कर ले गया है। माँ की ममता हिलोर मारी, जिसे अपनी कोख़ में 9 महीने पाली फिर जन्म से लेकर अबतक मुफलिसी में भी अपनी कलेजे में साट कर रखी आज उसी हृदय के टुकड़े को भेड़िये नोच दिया होगा।मन ही मन ये बात सोचती हुई जुगनी की माँ रोहन के घर पहुंच गई। " मालिक बेटी के लौटा दी, हम एकरा बारे में कोई से कुछ न  मुंह खोलम!" जुगनी की माँ रोहन के पिता के पैरों में गिड़गिड़ा कर बेटी की जान की भीख मांग रही थी। रोहन के पिता पैरों से जुगनी की माँ को धक्का दिया और बोला - तेरी बेटी दो दिन के बाद घर वापस चल जायेगी!" " आज काहे न मालिक!" इतना सुनते ही रोहन के पिता लठैतों से कहा- लाओ तो बन्दूक! जो ई कहेगी वही हम सुनेंगे " जुगनी की माँ घर आकर गांव के मुर्दे, हिजड़े बुद्धिजीवियों को आपबीती बताई, लेकिन सभी को लम्बी उम्र जीने की शौक थी, इसलिए कोई मुंह तक नहीं खोला ।  जुगनी के पिता प्रवास में मजदूरी करने गए हुए थे। ये सारी घटनाओं के जानने के बाद स्थानीय पुलिस को फोन से मदद की गुहार लगाई, लेकिन पुलिस को इस घटना की जानकारी पहले से ही थी,लेकिन  इस लोकतंत्र में मलिक तंत्र के राज से वो वाकिफ था। वर्दी भले ही जनता की पैसों की पहनती है, लेकिन चाकरी जनता की नही मालिक की करती है। जुगनी की इज्जत आबरू और जिंदगी मालिक के रहमोकरम, दयादृष्टि पर थी,लेकिन  जिसके बदन में खुद गंदी खून की परवाह हो, वो दूसरे की इज्जत आबरू, जान की कीमत क्या जाने?  इस घटना की क्लाइमेक्स ट्रेजडी के साथ हुई। दो दिन बाद जुगनी के घर के बगल के तालाब में उसको शव के रूप में लौटाई गई। जुगनी सदा के लिए चली गई, लेकिन आपके लिए कुछ सवाल छोड़ गई। वो आपसे अपनी पीड़ा नही बताई की भेड़ियों ने कैसे नोचा, कितना तड़पाया, कैसे मारा?कितनी उत्पीड़न, दर्द, छटपटाहट हुई? यहां मुर्दों को बताकर क्या करेगी? जुगनी की सवाल है कि' बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सबका साथ, सबका विकास। जैसे स्लोगन , पोस्टर क्यों , किसके लिए? लोकतंत्र में नही आज भी मालिक तंत्र में लोग जी रहे हैं।  बाबा साहेब अंबेडकर की बातें भुलाकर झूठे धर्म की ध्वज ढोते रहना। अपना सर्वनाश करवाते रहना। जितनी फ़ौज है हमारी की दुष्कर्मियों को घर से खींच कर मारते, लेकिन सब गुलाम रहने के आदि हो गया है।तुम में से भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु कहाँ ढूंढू? सब को अपने काम से मतलब है, इतना निष्ठुर, निर्दयी जो बन गए हो।अपनी जुगनी को कैसे बचाओगे ? तू तो गिद्ध जटायू से भी गये गुजरे हो, वो सीता माता को जीते जी रावण के साथ जाने से रोक दिया था। तुम अखबारों में मेरी खबरों को पढोगे , टीवी चैनलों पर डिबेट देखोगे, कुछ आह भरोगे, फिर भूल जाओगे, इसी तरह कीड़ा मकोड़े की तरह जीवन काट लोगे।

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