एक प्रोम्पटर ने खोल दी पोल ! प्रसिद्ध यादव।

   


 कल तक राहुल गांधी को लीडर के बदले रीडर कहने वाले कि पोल खुल गई, वो भी अंतराष्ट्रीय मंच पर ।हुजुर जहां भी देश में चुनावी रैली में जाते वही की क्षेत्रीय भाषा से बोलना शुरू कर देते थे जैसे मिथिला में - गोर लागै छी! भोजपुरी में- रउआ लोगन के गोर लागी, सब ठीक बा नु ! मगही में अपने लोगन से बात करे अइली हे!  अब इनकी नकलची के बोली की राज क्या था लोग समझ नहीं पाते, लोगों को लगा कि ये बहुत विद्वान और ज्ञानी है। भाषण में इनकी तुकबन्दी गज़ब की होती थी। एक बार गांधी मैदान पटना में नीतीश के भाजपा से अलग होने पर बोले थे- जो जेपी को छोड़ सकता है, वो बीजेपी को क्यों नही छोड़ सकता है। डाबोस में विश्व आर्थिक मामलों पर बोलना था , प्रोम्पटर के सहारे बोल रहे थे की अचानक इससे लिंक खत्म हो गया, चेहरा ऐसा हो गया कि काटो तो खून नही , फिर बहाना शुरू हुआ कि मेरी आवाज आपलोग सुन पा रहे हैं कि नही? लोगों ने बोला सुन रहे हैं ,आगे बोलें। आगे क्या खाक बोलें कोई अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ऐसे थोड़े आर्थिक मामले के जानकार थे कि बोलते। पुनः जब प्रोम्पटर शुरू हुआ जहां से वही से बोलना शुरूं किया, लेकिन तबतक चेहरे की सिकन , माथे की पसीने , कांपते होंठों और लड़खड़ाती आवाज़  देश का भट्ठा बैठा दिया।नेता ,मंत्री बनने से नहीं होता है बिषय की जानकारी जरूरी है और कोई एक दिन में इसे नही सीख सकता है, आजीवन पढ़ना पड़ता है।

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