संविधान से ही आदमी होने का अधिकार मिला ! प्रसिद्ध यादव।

 

73 वें गणतंत्र दिवस पर बधाई!



आज़ादी के पूर्व जब हमारा संविधान नही था तब इंसानो को जानवर से बदतर समझा जाता था, लेकिन आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को संवैधानिक व्यवस्था लागू हुआ तब हमें अपने अधिकार प्राप्त हुआ। गणतंत्र दिवस मनाया जाने लगा , लेकिन सामन्तों की मानसिकता वही बनी रही, वही मनुवादी सोच, तभी तो कुछ मनुवादी हमारे संविधान को जलाते हैं और मनुस्मृति लागू करने की मांग करते हैं, लेकिन बाबा साहेब अंबेडकर ने ऐसी व्यवस्था कर दिया है कि किसी की पूर्ण बहुमत की सरकार भी आ जाये, लेकिन वो हमारे संविधान को नही बदल सकते हैं।अपने अधिकारों को जानने के लिए और इसकी रक्षा के लिए हमें संविधान का ज्ञान होना जरूरी है।यशस्वी भारत के उस गौरवशैली संविधान की जिसकी नीव डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा रखी गयी थी। आज यही संविधान भारत की आत्मा है, या यूँ कहें की भारतीयों के लिए 1950 में तैयार किये गए नियमो, कर्तव्यों और अधिकारों की व्याख्या है, इसका पालन देश के प्रथम व्यक्ति अर्थात राष्ट्रपति द्वारा भी किया जाता है, इस संविधान का सम्मान करना और इसे सर्वोपरि रखना हम सभी देश वासियों का मौलिक कर्त्तव्य है।
यूँ तो हमारा देश विविधताओं का देश है अनेकों धर्म, जाति, सम्प्रदाओं, जनजातियों से मिलकर और एकता के सूत्र में बँधकर 26 जनवरी को हम भारतीय राष्ट्रीय पर्व के रूप में हर वर्ष मानते है, गर्व महसूस होता है जब हम कहते हैं, की हमारा संविधान देश का सबसे लम्बा और लिखित संविधान है, जिसका निर्माण बाबा साहेब द्वारा 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में पूर्ण किया गया, गर्व होता है हमे, जब अनेकता में एकता के राष्ट्रीय गान का स्वर हमारे कानो में गुँजन करता है और गौरवान्वित करता है हमारा वह तिरंगा, जो हमे सदैव भारतीय होने की अनुभूति करता है।
मौलिक अधिकार भारत के संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में निहित अधिकारों के अधिकार और अधिकारों के चार्टर हैं। यह नागरिक को स्वतंत्रता की गारंटी देता है जैसे कि सभी भारतीय भारत के नागरिकों के रूप में शांति और सद्भाव में अपने जीवन का नेतृत्व कर सकते हैं। इनमें सबसे उदार लोकतंत्रों के लिए आम अधिकार शामिल हैं, जैसे भाषण और अभिव्यक्ति की कानून स्वतंत्रता, धार्मिक और सांस्कृतिक आजादी और शांतिपूर्ण असेंबली, धर्म का आजादी, और अधिकार के माध्यम से नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक उपचार का अधिकार जैसे कि हेबुस कॉर्पस, मंडमस, निषेध और क्वॉ वारंटो। इन अधिकारों का उल्लंघन भारतीय दंड संहिता या अन्य विशेष कानूनों में निर्धारित दंड में परिणामस्वरूप न्यायपालिका के विवेक के अधीन होता है। मौलिक अधिकारों को मूल मानव स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को व्यक्तित्व के उचित और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए आनंद लेने का अधिकार है। ये अधिकार सार्वभौमिक रूप से सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, भले ही जाति, जन्म स्थान, धर्म, जाति या लिंग अलग हों। हालांकि मौलिक अधिकारों के अलावा संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकार समान रूप से मान्य हैं और उल्लंघन के मामले में उनके प्रवर्तन को कानूनी प्रक्रिया लेने में न्यायपालिका से सुरक्षित किया जाएगा। हालांकि, मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट से सीधे अनुच्छेद 32 के अंतिम न्याय के लिए संपर्क किया जा सकता है। अधिकारों की उत्पत्ति इंग्लैंड के बिल ऑफ राइट्स, संयुक्त राज्य अमेरिका के विधेयक और फ्रांस की घोषणा सहित कई स्रोतों में हुई है।
भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त छह मौलिक अधिकार समानता, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार, और संवैधानिक उपचार का अधिकार हैं। समानता का अधिकार कानून, समानता, धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान पर भेदभाव की रोकथाम, और रोजगार के मामलों में अवसर की समानता, अस्पृश्यता को खत्म करने और खिताब उन्मूलन शामिल है।
अनुच्छेद 14= विधि के समक्ष समानता
अनुच्छेद 15= धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा।
अनुच्छेद 16= लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता
अनुच्छेद 17= छुआछूत (अस्पृश्यता) का अन्त कर दिया गया है।
अनुच्धेद 18= उपाधियों का अन्त कर दिया गया है।
अगर कोई व्यक्ति किसी से जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग, रंग रूप से भेदभाव करता है तो वो दंड का भागी होगा।

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