पेगासस की कुकृत्य कितना विधिसम्मत है?प्रसिद्ध यादव।
इविम हैक क्यों नहीं?
पेगासस की राह पर कहीं एवीम तो नहीं।
आज निजता के उल्लंघन एक बड़ा मुद्दा है। क्या किसी की निजता का लीक करना कितना उचित है? आखिर फ़ोन का टैपिंग, डेटा का जासूसी करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन करना नही है। अगर मोबाइल का कोई दूसरे देश से डेटा लीक कर सकता है तो क्या एवीएम के साथ छेड़छाड़ नही हो सकता है, इनके डेटा या इनपुट नही बदले जा सकते हैं। इसलिए समय समय पर देश की विपक्षी पार्टी बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं। मतगणना जल्दी होने के चक्कड़ में कोई लोकतंत्र की अपारदर्शिता नही देखना चाहिए। सरकार को ऐसे मामलों पर स्पष्टीकरण करना चाहिए, ताकि देशवासियों की विश्वसनीयता बनी रहे। पेगासस का इस्तेमाल भारत में कई कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और नौकरशाहों के व्हाट्सएप संचार को बाधित करने के लिए किया गया था, जिससे भारत सरकार पर आरोप लगे। 17 व्यक्तियों - जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, विद्वान और पत्रकार शामिल हैं - ने एक भारतीय प्रकाशन से पुष्टि की कि उन्हें निशाना बनाया गया था।
भारतीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पूर्व चुनाव आयुक्तों और पत्रकारों के फोन नंबर कथित तौर पर 2021 में प्रोजेक्ट पेगासस द्वारा एनएसओ हैकिंग लक्ष्यों के डेटाबेस पर पाए गए थे।
कोरेगांव भीमा के कार्यकर्ताओं के फोन नंबर, जिन्होंने पेगासस सर्विलांस फोन नंबर सूची में एक हैक के माध्यम से अपने कंप्यूटर पर डेटा से समझौता किया था।
10 भारतीय फोन पर किए गए स्वतंत्र डिजिटल फोरेंसिक विश्लेषण, जिनके नंबर डेटा में मौजूद थे, ने या तो एक प्रयास या सफल पेगासस हैक के संकेत दिखाए। फेंके गए फोरेंसिक विश्लेषण के परिणाम उस समय और तारीख के बीच अनुक्रमिक सहसंबंध दिखाते हैं जब सूची में एक फोन नंबर दर्ज किया जाता है और निगरानी की शुरुआत होती है। अंतराल आमतौर पर कुछ मिनटों और कुछ घंटों के बीच होता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की एक महिला कर्मचारी और उसके तत्काल परिवार से जुड़े 11 फोन नंबर , जिन्होंने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, कथित तौर पर एक डेटाबेस पर पाए गए हैं जो उनके फोन की जासूसी की संभावना का संकेत देते हैं।
इसके उलट सरकार ने संसद के ज़रिए देश भर को बताया है कि "लॉफ़ुल इंटरसेप्शन" या क़ानूनी तरीके से फ़ोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को संसद में कहा कि भारत में एक स्थापित प्रक्रिया है जिसके माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से या किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की घटना होने पर या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्यों की एजेंसियां इलेक्ट्रॉनिक संचार को इंटरसेप्ट करती हैं।
वैष्णव के अनुसार, भारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत प्रासंगिक नियमों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक संचार के वैध इंटसेप्शन के लिए अनुरोध किए जाते हैं, जिनकी अनुमति सक्षम अधिकारी देते हैं.
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