विद्या सर्वोपरि धन ! नंदलूरु, आंध्रप्रदेश से प्रसिद्ध यादव।
हम ऋषि दयानन्द जी के उदाहरण पर दृष्टि डालते हैं। ऋषि दयानन्द के पास अपना किसी प्रकार का धन नहीं था। न उन्होंने धन कमाया और न अपने व्यय के लिए कभी किसी से धन मांगा। उनके पास विद्या का धन व ज्ञान इतना अधिक था कि धनी लोग उनसे आकर्षित होते थे और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट अनुभव न होने देते थे। उन्हें लेखन व प्रचार के लिए जिन साधनों की आवश्यकता होती थी, वह भी उनके शुभचिन्तक व अनुयायी उन्हें प्रदान करते थे। अतः विद्यासम्पन्न होकर और बिना किसी धनोपार्जन का काम किये भी उन्होंने देश व विश्व में सम्मान पाया और अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखते हुए वेद प्रचार वा धर्म प्रचार का कार्य किया। उन्हें कभी धन का अभाव नहीं आया। उनके जीवनकाल में सहस्रों व लाखों लोग उनके समर्थक थे। लोग उनसे ईर्ष्या भी करते थे। ईर्ष्या करने वालों को ऋषि दयानन्द के मानव व प्राणीमात्र के हितकारी कार्यों का ज्ञान नहीं था। अतः वह उन्हें हानि पहुंचाने के उपाय करते रहते थे। अन्त में वह सफल भी हुए। विष देकर उनका प्राणान्त कर दिया गया। इस बलिदान से ऋषि दयानन्द हमेशा के लिए अमर हो गये। आज भी उनकी कीर्ति गाते हुए उनके अनुयायी थकते नहीं है। इससे सफल जीवन और क्या हो सकता है? आज भी हम ऋषि दयानन्द के जीवन चरित्र और उनके ग्रन्थों से लाभान्वित हो रहे हैं। हममें यदि कुछ थोड़ा भी ईश्वर, आत्मा व सांसारिक ज्ञान है तो वह ऋषि दयानन्द व उनके अनुयायी विद्वानों वा आर्यसमाज की देन है। हम इनके ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकते। धर्माचरण करने वाले ज्ञानी मनुष्य को धन का अभाव नहीं होता। अतः सभी मनुष्यों को ज्ञानी बन कर परोपकार व धर्म के कार्य करने चाहिये।
स्रोत- सत्यार्थ प्रकाश।
Comments
Post a Comment