नीतीश न पक्ष के, न विपक्ष के विश्वासपात्र !प्रसिद्ध यादव।
राजनीति अटकलें राजनीति के पंडित जो लगा लें,लेकिन राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार न पक्ष के पसंद हैं, न विपक्ष के। खुद नीतीश सीएम पद को नही त्याग सकते हैं। भाजपा आरएसएस की पसंद कभी नही हो सकते हैं, मजबूरी के नाम नीतीश कुमार हैं। भाजपा खुद अपने अन्य सहयोगियों के साथ शीर्ष पद काबिज होने में सक्षम है , तो एक्सपायरी को ढोने से क्या फायदा ? रही बात विपक्ष को भले दूसरे राज्यों में भाजपा के विपक्षी नीतीश कुमार को अपनी पसंद हो सकते हैं, लेकिन बिहार में राजद और इनके सहयोगी कभी नीतीश को वोट नही दे सकते हैं। भले राजद को वोट का बहिष्कार करना क्यों न पड़ जाये। जब घर में ही ढाक के तीन पात हैं तो पीके क्या कर लेंगे। भाजपा पहले ही राज्यसभा के उपसभापति जदयू को ढो रही है। सभी की नज़र 10 मार्च के यूपी चुनाव पर है की भाजपा को क्या होगा? जदयू का हश्र क्या होगा ? ये मायने रखती है। अगर जदयू के कारण भाजपा को यूपी में नुकसान हुआ तो नीतीश के शीर्ष पद की बातें छोड़ दें, बिहार में भी दिन में तारे दिखने लगेंगे। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी और मजबूत पार्टी है, इसे जदयू के बैशाखी के बिना भी केंद्र में मजे से सरकार चला लेगी। एक राज्य के सीएम बनने के बदले किसी क्षेत्रीय दल के नेता को देश का शीर्ष पद देने की भूल न भाजपा करेगी और न राजद।नीतीश भाजपा के और राजद के कितना विश्वासी है, यह जगजाहिर है। ये कुर्सी के सिवाय किसी से मोह , प्यार नही रखते हैं। ऐसे भी भाजपा में शीर्ष पद के उम्मीदवार की कमी नहीं है।
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