भारतीय राजनीति में मानसिक गुलामी हावी!/ प्रसिद्ध यादव।
मानसिक ग़ुलामी वह स्थिति है, जब कोई व्यक्ति अपने आपको किसी के हवाले कर दे, या फिर शारीरिक दंड के भय के बिना भी किसी का आधिपत्य स्वीकार कर ले और वो काम भी करे जो उसके अपने हितों के खिलाफ हो. ऐसी गुलामी भारत में पाई जाती है.
भारत में ग़ुलामी का स्वरूप ज्यादातर मानसिक ही रहा है. हालांकि भारतीयों की मानसिक ग़ुलामी का एक कारण उपनिवेशवाद भी रहा लेकिन ये कहना सही नहीं होगा कि भारतीयों की मानसिक गुलामी अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुई. अंग्रेजों के भारत में आने से पहले भी यहां मानसिक ग़ुलामी ख़ूब फली-फूली, जिसके पीछे सामाजिक/धार्मिक मूल्य और रूढ़िवादी परम्पराएं रहीं. मानसिक ग़ुलामी को शास्त्रों का डर फैला कर क़ायम किया जाता रहा है. पहले यह डर जन्म-मरण-पुनर्जन्म, भूत-पिशाच, देवी-देवता, शाप-वरदान, अवतारवाद आदि के नाम पर फैलाया जाता रहा, अब किसी जाति, धर्म या समुदाय विशेष का डर फैलाकर मानसिक गुलामी का लक्ष्य हासिल किया जाता है.अब्राहम लिंकन, ज्योति बा फुले , महात्मा गांधी, डॉ. बी.आर. आंबेडकर, मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मण्डेला आदि ने ग़ुलामी समाप्त करने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी. भारत में मानसिक ग़ुलामी से आज़ादी की लड़ाई की शुरुआत महात्मा ज्योतिबा फुले ने की, जिन्होंने अपनी किताब ‘ग़ुलामगिरी’ में पाखंड और जातिवाद की ग़ुलामी से मुक्ति का रास्ता दिखाने की कोशिश की. ज्योतिबा फुले की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आंबेडकर ने भी वेदों-पुराणों-स्मृतियों का खंडन किया और मनुस्मृति जैसे ग्रंथ को सार्वजनिक रूप से जलाकर उसकी पवित्रता को चुनौती दी.
ग़ुलामी के ख़िलाफ़ लड़ाई को एक क़दम और आगे ले जाते हुए आंबेडकर ने इस बात को उजागर किया कि आधुनिक समय में मानसिक गुलामी राजनीति में कैसे हावी होती है?
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