अनुप्रिया पटेल पिता के दुश्मनों के साथ सत्ता की साझेदारी! -प्रसिद्ध यादव।
सोने लाल पटेल पिछड़े वर्गों के लिये ताउम्र लड़ते रहे । यूपी के भाजपा सरकार में एक सभा में इनपर इतनी लाठियां बरसाई की शरीर का अंग अंग टूट गया था, मारने की पूरी साजिश रची गई थी, क्योंकि पटेल यूपी में पूरे कुर्मी जाति और पिछड़े को गोलबंद कर दिया।ये पिछड़े के चैंपियन नेता और असमानता के ख़िलाफ़ जीवन भर मुखर रहे। दुर्घटना के बाद ठीक होकर फिर अपने नये तेवर में आये, लेकिन 2009 में कानपुर में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई, जो आज भी रहस्यमय है। तब बेटी अनुप्रिया पटेल इस घटना को सीबीआई जांच की मांग की और पिता के राह पर चलने के कसमें खाई थी। पिता के विरासत और संघर्ष से नेता बनी अनुप्रिया पटेल पिता के दुश्मनों से मिलकर केंद्र सरकार में मंत्री बनकर राज सुख भोग रही हैं और पिता की मौत की सीबीआई जांच की मांग भूल गई। यूपी के चुनाव में अनुप्रिया के कदम से परिवार में विद्रोह हुआ और पूरे कुर्मी जाति भाजपा के खिलाफ है। इसकी टिस बिहार के सीएम नीतीश कुमार को भी है तभी तो जदयू भी भाजपा को यूपी में औकात दिखा दिया। यूपी में कुर्सी जाति की दर्जनों सीट पर निर्णायक वोटर हैं।साइंस का एक प्रतिभाशाली स्टूडेंट इमरजेंसी के दौर में हुए छात्र आंदोलन का हिस्सा बनता है और अपने गांव से समाजिक न्याय की लड़ाई की शुरुआत करता है. पहले चौधरी चरण सिंह और फिर कांशीराम के साथ जुड़ता है, लेकिन लक्ष्य बनाता है, ‘यूपी की राजनीति में कुर्मी जाति को व्यापक प्रतिनिधित्व दिलाना’. 10 साल वह दूसरी पार्टियों के साथ तो 14 साल वह अपनी पार्टी बनाकर संघर्ष करता है, लेकिन एक चुनाव नहीं जीत पाता है. इस बीच एक रोड एक्सीडेंट में उसकी मौत हो जाती है. पार्टी की जिम्मेदारी उसकी पत्नी और तीसरे नंबर की बेटी उठा लेती है. बेटी चुनाव में उतरती है. पहले विधायक, फिर सांसद, फिर केंद्र में मंत्री बन जाती है. लेकिन, यहां से परिवार में एक टूट पड़ती है. बेटी और मां आमने-सामने हो जाती हैं. अब साल 2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों ही गुट अलग तरह का मोर्चा खोले हुए है. पिता के आत्मा को दर्द पहुंचाने वाली अनुप्रिया पटेल को अपनों से गद्दारी और दुश्मनों से वफादारी का सबक जरूर मिलेगा।
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