भारत में सामाजिक- आर्थिक आज भी गहरी -चौड़ी खाईं क्यों?/ प्रसिद्ध यादव ,अध्यक्ष, ओबीसी, पटना।।

          

    पिछलगु बनना छोड़ें! अपनी राह मेरे साथ हमसफ़र बनकर चलें।

हम क्रान्ति जरूर लाएंगे।


जिसकी आबादी देश में 85 फीसदी से अधिक है, उसकी सरकारी नॉकरी में भागीदारी सिर्फ 40.15 फीसदी है। आज इक्कीसवीं सदी में भी इतना भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया है। विधायिका, न्यापालिका, मीडिया, और निजी क्षेत्रों में इसकी खाईं और ज्यादा है। जब प्रोमोशन में आरक्षण के ख़िलाफ़ याचिका दायर किया गया तो केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और बताया कि देश में बबाल मच जायेगा।पहले ही इतनी  हकमारी हो गया है कि जिसकी भरपाई असम्भव है।अब आगे हुआ तो देश में विद्रोह हो जाएगा। सरकार भी अब जान गई है कि वंचित समाज अब जागरूक हो गया है, अपने हक हकूक के लिए आंदोलन कर सकते हैं।

 केंद्र की इस को 2017 में दिल्ली HC ने खारिज कर दिया था। अपनी नीति का बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि यह इस अदालत द्वारा निर्धारित संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है। सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है।

केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि एससी और एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने से प्रशासन की दक्षता में किसी भी तरह की बाधा नहीं आई। सरकार ने कहा कि इसका लाभ केवल उन्हीं अधिकारियों को दिया गया जो मानदंडों को पूरा करते हैं और उन्हें फिट घोषित किया जाता है।

75 मंत्रालयों और विभागों का डेटा पेश करते हुए केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि कुल कर्मचारियों की संख्या 27,55,430 है। इनमें से 4,79,301 एससी, 2,14,738 एसटी समुदाय से आते हैं। इसके अलावा ओबीसी कर्मचारियों की संख्या 4, 57,148 है। प्रतिशत के लिहाज से केंद्र सरकार के कुल कर्मचारियों में एससी 17.3%, एसटी 7.7% और ओबीसी 16.5% हैं।उपरोक्त सरकारी आंकड़ों को देखकर वंचितों की आंखें खुलनी चाहिए और अपने अधिकार के लिए एक होना चाहिए।

इसे पढ़ने के बाद शेयर करें और दिमाग में सोचे।अगर राह नहीं बदले तो आनेवाली पीढ़ी माफ़ नही करेगी।


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