हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद.- स्वर जगजीत सिंह /प्रसिद्ध यादव।

         


डॉ रही मासूम रजा की लिखित यह जुदाई भरा ग़ज़ल आज भी कर्णप्रिय है।

 हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद

 अपनी रात की छत पर कितना तनहा होगा चाँद

 हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद 

जिन आँखों में काजल बन कर तेरी काली रात

 जिन आँखों में काजल बन कर तेरी काली रात

 उन आँखों में आंसू का एक कतरा होगा चाँद

 हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद 

रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर

 रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर 

आंगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद

 हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद

 चाँद बिना हर दिन यूँ बिता जैसे युग बीते

 चाँद बिना हर दिन यूँ बिता जैसे युग बीते

 मेरे बिना किस हल में होगा कैसा होगा चाँद

 हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद

 अपनी रात की छत पर कितना तनहा होगा चाँद

 हम तो है परदेश में देश में निकला होगा चाँद

https://youtu.be/GjWDApN7gvo

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