अम्बेडकर! ब्रह्माण्ड के एक तू ध्रुव तारा!( कविता)-प्रसिद्ध यादव।
बाबा साहब!कितने झेले दंश
कितनी पी जहर की घूंट ।
ऊंच-नीच,जाति, छुआछूत की
गांवों में,शहरों,महानगरों,स्कूल, कॉलेजों में
सड़क पे,सदन में,चौक-चौराहों पे
कट्टरपंथी,ढोंगी,पाखंडियों के हांथों
न कुँआ, न तालाब की पानी
न साथ बैठने की कहानी
पग-पग पे अपमान के घूंट पिये।
आदमी को आदमी
होने का एहसास दिलाया
समतामूलक समाज का
राह दिखाया।
संविधान से ताकत दिलवाई
झूठ , पाखण्ड की कलई खोली।
शिक्षा पर दिया बल
जो ग्रहण किया
उसे शेर का बल ।
छोड़ हिन्दू धर्म
बौद्ध धर्म स्वीकार किये
ज्ञान की प्रकाश से
वंचितों के उद्धार किये।
जलाये दीप संविधान के
देश के विधान के
राष्ट्र के निर्माण के
वंचितों के सम्मान के
अब सब तेरी याद करते है
उसके बाद तेरी मूर्ति तोड़ते हैं
गरीबों के दिल से
कोई तुझे निकाल दे
यह नही किसी में दम।
ब्रह्माण्ड के एक तू ध्रुव तारा
कोई नही मिटा सकता
जबतक रहेगी यह धरा।
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