जिला पार्षद दीपक मांझी से हाथापाई निन्दनीय!प्रसिद्ध यादव।

   




इन्दिरा आवास में रहने वाले मेरे गाँव बाबूचक के रहने वाले जो फुलवारी शरीफ प से अपार मतों से विजयी हुए हैं।  इनके नाना जी ही यही बस गए थे, क्योंकि हमारे यहां सामाजिक माहौल समरस था।कोई छोटा, कोई बड़ा का भेदभाव नहीं है।एक ही थाली में लोग साथ खाते हैं चाहे वो मुसहर हो, पासी हो या यादव हो। बगल में गोरगावां के रेल यार्ड होने के कारण मजदूरों की कमाई अच्छी होती है।साथ ही मंथन द्वारा दलितों के बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था भी है।हमारे गाँवो में दलितों के साथ भी रिश्ते के साथ बुलाया जाता है।यही कारण है कि दीपक मांझी भी मुझे मामा ही कहता है।इतना विनम्र और कुशल व्यवहार के धनी है कि लोग इसके मुरीद हैं। चाहे दानापुर के विधायक रीतलाल यादव हों, पूर्व मंत्री श्याम रजक, पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी हों, सबके प्रिय हैं। चुनाव जीतने के बाद सीधे मेरे घर आकर आशीर्वाद लिया था।

दीपक क्षेत्र के लैहियार चक से  हरिकीर्तन के उद्घाटन कर के अकेले स्कार्पियो चला कर आ रहा था।उदघाटन में गोनपुर के पैक्स अध्यक्ष राजीव रंजन, मुखिया पति प्रमोद शर्मा भी थे।धुपारचक गांव में जैसे ही पंचायत समिति एवम जदयू अध्यक्ष रामप्रवेश सिंह के पास पहुंचा की पीछे से उत्तम और सुधीर जो एक कोरजी और दूसरा फलियां टोला के था गाड़ी ओवरटेक कर गाड़ी में सटा दिया।दीपक प्रतिरोध किया तो दोनों गाली गलौज करने लगा और देख लेने की धमकी देने लगा। आगे  बढ़ने पर फिर एकबार गाड़ी सटाया।जब बभनपुर पहुंचने पर फिर गाड़ी में धक्का दिया। फिर क्या था दीपक के आबोहवा भी बाबूचक का है। गाड़ी रोककर दोनों को उठा उठा कर बीच पक्की सड़क पर तीन तीन पटकन दिया। दोनो के सारा नशा उतर गया। भीड़ लग गई, पुलिस को फोन हुआ। पुलिस भी आकर बाकी देह की दर्द निकाल दी।

आज भी लोग दलित को दोयम दृष्टि से देखते हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। दीपक मांझी की ताकत और साहस का अंदाजा लग गया होगा। खैर मनाये की इसके साथ रहने वाले लोग नहीं थे, नहीं तो क्या हश्र होता कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है।

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