धैर्य और मुसीबत ! /प्रसिद्ध यादव।
किसी भी होनी और अनहोनी का कारण मनुष्य स्वयं है।ऐसे एक कहावत है विनाशकाले विपरीत बुद्धि। विनाश के समय सबसे पहले व्यक्ति का बुद्धि भ्रष्ट होता है, उसके बाद चरित्र , क्रिया कलाप । हम बहुत से शब्दों के गूढ़ रहस्यों को नहीं समझते हैं, लेकिन उसके उपयोग करते हैं। मन में ख्याली पुलाव पकाने से किसी को पेट नहीं भरता ,बल्कि धन और समय दोनों की बर्बादी से ज्यादा कुछ नहीं, क्योंकि जो है ही नहीं, उसके लिए परिश्रम व्यर्थ ही है। चार कदम आगे बढ़ने के लिए दो कदम पीछे हटने में बुद्धिमत्ता है। बुद्धिमान वही जिसके इशारे पर सामने वाला नाचे,और उसे महसूस हो कि ये मेरी वीरता और महानता है। किसी को दबाना यानी उसे ज्वालामुखी बनाना और इसका विस्फोट समूल नाश। आदमी के आदमी के बीच स्पेस हो ताकि कभी आ -जा सके ।स्पेस खत्म सब खत्म।भारतीय जीवन दर्शन में धैर्य को व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी माना गया है। हमारे धर्मग्रंथों में बताया गया है कि जो व्यक्ति धैर्यशील होता है, वह दुनिया को जीत सकता है। सभी धर्मों के मूल वाक्यों में धैर्य का महत्व माना गया है। सब्र का फल मीठा होता है, मुसीबत में फंसने का एक बहुत बड़ा कारण झूठ भी होता है. एक झूठ को छिपाने के लिए व्यक्ति को कई झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में एक न एक दिन उसका झूठ जरूर पकड़ा जाता है. इससे व्यक्ति अपना विश्वास, मान और सम्मान तो खोता ही है, साथ ही कई बार इसकी वजह से दूसरी मुश्किल भी बढ़ सकती है. हकीकत को नजरअंदाज करके कोई तीसमारखाँ नहीं बन जाता, आज हम हैं सड़क पर कल तुम सड़क पर होंगे।
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