सत्यमेव जयते ! / प्रसिद्ध यादव।
यह मात्र दो शब्द नहीं बल्कि जीवन का सार है, इसे जो समझ गया वो महान है, जो नहीं समझा, वो नादान है। सुकरात, गैलेलियो अपने जीवन को सत्य के लिए ही कुर्बान कर दिए थे लेकिन सत्यपथ से कभी अडिग नहीं हुए। सवाल है कि सत्य क्या है? ये जानना जरूरी है। जो विधिसम्मत, नीतिपूर्ण, नैतिकता के साथ हो वो सत्य है।भारत का ‘राष्ट्रीय आदर्श वाक्य’ माना जाता है, जिसका अर्थ होता है- “सत्य की ही जीत होती है”. बताया जाता है कि ‘सत्यमेव जयते’ को राष्ट्रपटल पर लाने के लिए और उसका प्रचार प्रसार करने के लिए पंडित मदनमोहन मालवीय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सत्यमेव जयते का सूत्रवाक्य मुण्डक-उपनिषद से लिया गया है. यह मूलतः मुण्डक-उपनिषद के सर्वज्ञात मंत्र 3.1.6 का शुरुआती हिस्सा है.हमारा राष्ट्रीय झंडा तिरंगा है, राष्ट्र गान 'जन गण मन..' और राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम है, राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय पक्षी मोर है, राष्ट्रीय फूल कमल और राष्ट्रीय फल आम है. इसी तरह हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न अशोक स्तंभ है. सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में बनवाए गए स्तंभ से यह राष्ट्रीय चिह्न लिया गया है. 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू होने के साथ ही इन राष्ट्रीय प्रतीकों को अंगीकृत किया गया.मुण्डक-उपनिषद के जिस मंत्र से यह अंश लिया गया है, वह है- सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः/ येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम्//. इस पूरे मंत्र का अर्थ है- 'सत्य' की ही विजय होती है असत्य की नहीं. 'सत्य' के द्वारा ही देवों का यात्रा-पथ विस्तीर्ण हुआ. यही वह मार्ग है, जिससे होकर आप्तकाम (जिनकी कामनाएं पूरी हो गई) ऋषिगण जीवन के चरम लक्ष्य/'सत्य' के परम धाम को प्राप्त करते हैं.
उपनिषद का यह वाक्यांश 'सत्यमेव जयते' आदर्श वाक्य के तौर पर राष्ट्रीय प्रतीक में शामिल है, इसलिए इसका उपयोग निजी रूप से नहीं किया जा सकता है. यह अशोक स्तंभ शिखा के नीचे दिखाई दे सकता है. भारतीय नोटों और सिक्कों में भी राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के साथ यह आदर्श वाक्य मुद्रित रहता है.
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