केंद्रीय जाँच एजेंसियां कितने स्वतंत्र है/प्रसिद्ध यादव।

     अगला छापेमारी स्टालिन या नीतीश के होगी!

संघ के खिलाफ जो मुखर होगा,उसका हश्र यही करेगा @ सरदार!


 भारत की  केंद्रीय जाँच एजेंसियां कितना स्वतंत्र रूप से कार्य करती है?एक यक्ष प्रश्न है। क्या सरकार के इशारे पर या हस्तक्षेप नहीं होता है? सीबीआई की जाँच की तत्परता ,सुस्ती और क्लीन चिट देने पर विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगती है।   राजद सुप्रीमो के 17 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी हुई। मामला रेलवे में नोकरियाँ देने की है। जाँच होनी चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से लेकर, उच्च न्यायालय तक न्यायधीशों की सिफारिशों पर अपने लाखों चहेतों की नोकरियाँ दी गई। क्या यह जांच का बिषय नहीं है। मेडिकल कॉलेज में ब्यापम घोटाला, हत्या, बिहार के रंजीत डॉन की करतूत जाँच का बिषय है कि नहीं  या अबतक परिणाम क्यों नहीं? सर्वविदित है कि लालू यादव संघ और भाजपा के विरुद्ध सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं इसलिए राजनीति प्रतिद्वंद्वी के कारण इनके बीमार अवस्था में मानसिक रूप से पडतारित किया जाता है। देश से गुजरती व्यवसायी अरबों खरबों लेकर भाग गया। आखिर किसके सह पर!यह जांच का बिषय है कि नहीं।सीबीआई के कामकाज में सरकार के बेजा दखल देने और इस जांच एजेंसी का राजनीतिक इस्तेमाल किए जाने की बात भी काफी पहले से कही जाती रही है। 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने एक चर्चित मामले में सीबीआई को पिंजरे का तोता बता दिया था। आशय यह था कि जांच एजेंसी अपने मन से कुछ नहीं करती, अपने मालिक यानी सरकार की बात दोहराती रहती है। तब से सीबीआई को स्वायत्त बनाने की बातें तो बहुत हुईं, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पिछले महीने भी सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों की जांच में देरी के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर केस में दम है तो आपको चार्जशीट फाइल करनी चाहिए, लेकिन अगर आपको कुछ नहीं मिलता है तो मामला खत्म होना चाहिए। बेवजह तलवार न लटकाए रखें।कोयला घोटाले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के बारे में कहा था सीबीआई 'पिंजरे में बंद एक तोते' की तरह है। अदालत का कहने का मतलब ये था कि प्रमुख जांच एजेंसी सरकारी कंट्रोल में है और केंद्रीय सरकार को सलाह दी कि वो इसकी आजादी को बहाल करने के लिए जरूरी कानूनी कदम उठाए।

तो क्या सीबीआई व्यापम घोटाले और इससे सम्बंधित संदिग्ध हत्याकांडों की गुत्थी सुलझा पाएगी? इस संस्था के एक पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर शांतनु सेन कहते हैं, "अगर 'ऊपर' से हस्तक्षेप ना हो तो सीबीआई मामले के तह तक पहुँच सकती है।" उन्होंने 1993 में मुंबई सिलसिलेवार बम धमाकों और ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे मामलों का उदाहरण देते हुए कहा कि, "जांच एजेंसी बड़े मामलों को सुलझाने का माद्दा रखती है अगर उसे आज़ादी से काम करने दिया जाए।"

लगभग दस साल पहले गुजरात में हुए फर्जी पुलिस मुड़भेड़ में कुछ मुस्लिम युवा मारे गए थे।

सीबीआई ने अपनी जांच में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को खास अभियुक्त माना था। सुप्रीम कोर्ट के कहने पर उनके खिलाफ मुकदमा मुंबई में चल रहा था, लेकिन कुछ महीने पहले सीबीआई ने अभियुक्तों की लिस्ट से अमित शाह का नाम खारिज कर दिया।

इस मामले में अमित शाह का नाम आरोपियों के लिस्ट से हटाने पर विपक्ष ने इसका विरोध भी किया था लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हुआ। लेकिन जनमानस में आज भी यह दर्द है।

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