कई मामलों में एफआईआर लिखने से बचतीक्यों है पुलिस?/प्रसिद्ध यादव।

 

   जानिए अपने अधिकार को!


एफआईआर यानी फर्स्‍ट इन्‍फॉर्मेशन रिपोर्ट होती है. दण्‍ड प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी 1973 के सेक्‍शन 154 में का जिक्र है.

हिंदी में इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहते हैं .भारत के किसी भी कोने में हुए संज्ञेय अपराध को पहले पुलिस में रिपोर्ट करने की व्यवस्था की गई है जिसके बाद ही कोई कार्यवाही होती है.
एफआईआर की रिपोर्ट तत्काल मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है. सीआरपीसी की धारा 157(1) में है कि पुलिस द्वारा मामला दर्ज कर फर्स्‍ट इन्‍फॉर्मेशन रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट तक जल्द से जल्द भेज दी जानी चाहिए.
इसे गैर-संज्ञेय अपराध सूचना कहा जाता है. असंज्ञेय अपराध में किसी के साथ हुए मामूली झगड़े, गाली-गलौच या किसी डॉक्युमेंट के खो जाने की शिकायत होती है. शांति भंग करने के मामले भी इस गैर संज्ञेय अपराध में आते हैं.
इस प्रकार के अपराध होने पर पीड़ित व्यक्ति पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने पर ऐसे मामले को एफआईआर में दर्ज नहीं करके एनसीआर में दर्ज किया जाता है.
दरअसल, ये इसलिए होता है कि किसी के साथ मामूली झगड़े या शांति भंग करने के मामले की जानकारी पुलिस को मिल जाए और उसे आरोपी को चेतावनी भी मिल जाए. यानी पुलिस के संज्ञान में आ जाए. ऐसे मामलों में अगर आरोपी दोबारा उसी तरह से मारपीट या लड़ाई करते हैं तो पुलिस एनसीआर के बजाय एफआईआर दर्ज कर जेल भी भेज देती है.
ये कदम उठाएं जब ना लिखी जाए आपकी | देश क्या आपको भी लगता है कि पुलिस  एफआईआर  नहीं लिखती तो उस जगह की पुलिस प्रशासन भ्रष्ट है? लेकिन अगर ऐसा है तो देश के हर पुलिस स्टोशन में ही ऐसा क्यों होता? क्या पुलिस के द्वारा हर एक  एफआईआर न दर्ज करने के पीछे कोई बड़ा कारण है?  अगर आपकी  एफआईआरपुलिस दर्ज करने में आनाकानी करती है? दरअसल, पुलिस  एफआईआर लिखने को बाध्य है कानून के तहत लेकिन आकड़ों को देखा जाए गौर से तो पुलिस स्टेशन में 10 में से 9  एफआईआर दर्ज ही नहीं की जाती है, ऐसा क्यों? होता ये है कि अगर पुलिस हर एक  एफआईआर  दर्ज करने लगेगी तो उसे उस पर पूरी रह से एक्टिव भी रहना होगा। मान लीजिए कि किसी पुलिस स्टेशन का इंचार्ज सारे  एफआईआर को दर्ज कर लेता है तो उसकी तारीफ नहीं बल्कि डांट लगेगी। होता ये है कि किसी भी पुलिस स्टेशन की इफिसिएंसी इससे मापी जाती है कि उसके यहां कितने  एफआईआर दर्ज हुए यानि कि मामले ज्यादा आए तो इंचार्ज को अपने एरिया में ठीक से काम नहीं करने को लेकर उसे अपने सीनियर से डांट में सुननी पड़ सकती है। ऐसे में पुलिस  एफआईआर  ही नहीं लिखती। दूसरी तरफ  एफआईआर  लिखने पर पुलिस प्रशासन को मोशन में लाना होगा।  एफआईआर  लिखकर तुरंत एक्शन लेना होगा। आरोपी को गिरफ्तार करना होगा। साथ ही अपने काम का पूरा डीटेल डायरी बनानी होगी। सबूत जुटाने होगे। और तो और अपने सीनियर की डांट भी सुननी होंगी। ऐसे में पुलिस वाले FIR दर्ज न करने का रास्ता अपनाते हैं। ऐसे में क्या करना चाहिए? पुलिस द्वारा  एफआईआर न लिखा जाए या फिर FIR दर्ज करने से साफ मना किया जाए तो आम आदमी को क्या कदम उठाने चाहिए? इसे जानने के लिए पहले जानना होगा कि अपराध के प्रकार क्या है। दो तरह के अपराध होते हैं संज्ञेय और गैर-संज्ञेय। संज्ञेय अपराध का ही  एफआईआर दर्ज किया जा सकता है और गैर-संज्ञेय मामले में मैजिस्ट्रेट पुलिस ऑफिसर्स को निर्देशित करता है कि वो विशेष कार्रवाई करें। संज्ञेय अपराध में बलात्कार, दंगे, डकैती या फिर लूट और हत्या जैसे केस आते हैं, जबकि जालसाजी, सार्वजनिक उपद्रव और धोखाधड़ी गैर-संज्ञेय अपराधों में शामिल है जिसके तहत किसी व्यक्ति या समूह को बिना वारंट के पुलिस अरेस्ट कर सकती है।.

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