देश में बढ़ती असमानता चिंताजनक !/प्रसिद्ध यादव।
देश दुनिया में बढ़ती असमानता चिंताजनक है। पूंजीपतियों ने लोकतंत्र के सभी स्तम्भों पर प्रभाव डालने लगे हैं और नियंत्रित करने लगे हैं। लोकतंत्र में जिसकी बहुमत, उसकी सरकार , लेकिन पूंजीपति वर्ग अब पूँजीयों से बहुमत बनाने लगे हैं। पूंजी लगाकर चुनाव जीतते हैं और फिर मनचाहा सरकार बनवाते हैं।जब मनचाहा सरकार बनती है तो नीतियां भी मनमुताबिक बनती है। सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र बन रहे हैं। धीरे धीरे सरकार की नहीं कम्पनियों के स्वामी के लोग अधीन हो रहे हैं।भारत की वर्तमान आर्थिक मॉडल इसी पर काम कर रही है, लेकिन धर्म की आर में दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार की एक गलत नीतियां पीढ़ी दर पीढ़ी भुक्तभोगी होती है। सरकार के पास लोककल्याण की नीति और आधारभूत संरचना को मजबूत करने की क्या योजना है? सिर्फ निजीकरण। सार्वजनिक क्षेत्र संसाधनों को भी निजी क्षेत्र को उपयोग करने के लिए दे दिया। संसाधनों पर अधिकार देश के लोगों को होता है और ऐसे में सिर्फ मुनाफाखोरी और पूंजीपतियों को संसाधनों को दोहण करना उचित नही है। वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में दुनियाभर के 100 से अधिक शोधकर्ताओं ने चार वर्षों से न केवल उस गति को मापा है, जिस पर असमानता बढ़ रही है बल्कि इसकी मात्रा भी निर्धारित की है। रिपोर्ट में धन, आय, लिंग और कार्बन उत्सर्जन में असमानता को मापा गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, लोकतंत्र के उदय, आर्थिक उदारीकरण और मुक्त बाजार के साथ आय और सम्पत्ति दोनों में व्यापक असमानता रही है। वर्तमान में वही हालात हैं जो 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी साम्राज्यवाद के चरम के समय थे। कई देशों में और बदतर हाल है।
1820 और 2020 के दौरान शीर्ष 10 प्रतिशत लोग ही कुल आय का 50-60 प्रतिशत हिस्सा अर्जित करते थे जबकि निम्न आय वाले 50 फीसदी लोग सिर्फ 5 से 15 प्रतिशत ही आय अर्जित करते थे। अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक लुकास चांसल कहते हैं कि आंकड़े असमानता के स्तर के बारे में स्पष्ट हैं, असमानता लगभग 200 साल पहले के स्तर पर बनी हुई है। वह कहते हैं, “यह असमानता लोकतंत्र से ज्यादा लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हमारे द्वारा चुने गए विकल्पों पर सवाल उठाती है।”
दूसरा चिंताजनक पहलू सम्पत्ति और आय के स्तर के बीच भारी असंतुलन है। समझने की दृष्टि से, सम्पत्ति एक पूंजी या आस्तियां (भौतिक सम्पत्ति के रूप में) है जो किसी देश या व्यक्ति के पास होती है और अगली पीढ़ी को विरासत में मिलती है।
आय किसी भी गतिविधि के लिए धन का प्रवाह है। धन या सम्पत्ति का स्तर अक्सर आय के स्तर को बढ़ाने की क्षमता तय करता है। 2020 में वैश्विक संपत्ति 510 ट्रिलियन यूरो (575 ट्रिलियन डाॅलर) आसपास है, जो आय स्तर का लगभग 600 प्रतिशत है।
1990 के दशक में यह अनुपात महज 450 फीसदी था। रिपोर्ट में कहा गया है, “450 प्रतिशत धन-से-आय के अनुपात (यानी राष्ट्रीय आय के 4.5 वर्ष के बराबर) का तात्पर्य है कि एक देश 4.5 साल के लिए काम करना बंद करने का फैसला कर सकता है और पहले जैसा जीवन स्तर का आनंद ले सकता है। ऐसा करने में सारी संपत्ति की बिक्री भी शामिल है। एक तरफ 80 फीसदी लोग मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हैं तो दूसरी तरफ पुश्त दर पुश्त की व्यवस्था करना कितना लोकतांत्रिक है?
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