बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों के द्रोपदी मुर्मू ! / प्रसिद्ध यादव।
बाबा साहेब अंबेडकर वंचितों को हमेशा शिक्षित होने पर जोर देते थे।वे कहते थे कि शिक्षा शेरनी की दूध जैसा है जो पियेगा,वही दहारेगा। शिक्षित होगा तो अपने अधिकारों को जानेगा,कोई शोषण नहीं करेगा। द्रोपदी मुर्मु अपने बच्चों की खातिर शिक्षक बनी थी,लेकिन आज देश की शीर्ष स्थान पर पहुंचने की रेस में है। अम्बेडकर द्वारा वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष का नतीजा है कि एक आदिवासी समुदाय की पहली महिला राष्ट्रपति पद पर आसीन होने वाली हैं। आजादी के 75 वें साल में देश में इतना बड़ा चक्र घूम जायेगा, कोई सोचा भी न था। आने वाले समय में देश पर आधिपत्य वंचितों का होगा,इसमें कोई शक नहीं है। बशर्ते, अपने अधिकारों के लिए निरंतर लड़ने की जरूरत होगी।ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को जन्मी द्रौपदी मुर्मू आदिवासी जातीय समूह संथाल से संबंध रखती हैं। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू है। उनका विवाह श्यामाचरण मुर्मू से हुआ था। द्रौपदी अपने पति और दो बेटों को खो चुकी हैं। उनकी एक बेटी है जिसका नाम इतिश्री मुर्मू है। बाबा साहब का यह सपना था कि हम एक ऐसा समाज बनाए जहां भेद-भाव, अन्याय और शोषण के लिए कोई जगह ना हो। सभी लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में खड़े और सभी समान रूप से विकास करें।
उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने तो भगवान बुद्ध के अप्प दीपो भव: के भाव को जीवन में अंगीकार करने का प्रयास किया। यही कारण है कि आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जहां कहीं भी गरीबों, वंचितों व समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की बात होती है। न्याय बंधुता व स्वाधीनता की बात होती है वहां पर बाबा साहब जी का नाम बड़ी श्रद्धा व सम्मान के साथ लिया जाता है। बाबा साहब जी के जन्म के दौरान छुआछूत व अस्पृश्यता की भावना थी। स्कूल सहित जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए इस प्रकार की भावना थी लेकिन उन्होंने पलायन का नहीं जीवन में संघर्ष का रास्ता अपनाया। आने वाला कल वंचितों का होगा और जल्द सवेरा होने वाला है।
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