सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान व रक्षा करना सभी का दायित्व। प्रसिद्ध यादव।


 



राष्ट्रीय सम्पति से देश के हर नागरिक को भावनात्मक लगाव होना चाहिए।सार्वजनिक संपत्ति जितनी समृद्ध होगी,हम उतने ही समृद्ध होंगे। सार्वजनिक संपत्ति को लूटना, दोहण करना देशद्रोही कार्य है और इसमें भ्रष्टाचारी भी आते हैं। ऐसे सम्पति की रक्षा करना व्यापक दृष्टिकोण के रूप में देखा जाना चाहिए।वोट बैंक के लिए देश की संपत्ति को बेच देना,नीलाम कर देना या मनमानी फैसला लेना भी उचित नहीं है।

देश की सार्वजनिक या राष्ट्रीय संपत्ति के प्रति अपनी निजी संपत्ति जैसी  चिंता और सुरक्षा का भाव रखना देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। इसका निर्वहन कर वह एक प्रकार से स्वयं का भी हित करता है क्योंकि सार्वजनिक संपत्ति एक राष्ट्रीय संपत्ति है जो सब के उपयोग के लिए है और यदि वह सुरक्षित रहेगी तो सभी के लिए उपलब्ध रहेगी। वस्तुत यह राष्ट्र की विरासत होती है। दरअसल सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और सदुपयोग हमारे संस्कारों पर भी निर्भर करता है। इतिहास गवाह है कि जिस देश के नागरिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना उच्च कोटि की होती है और जहां के लोगों के भीतर अपनी राष्ट्रीय संपदा के प्रति प्रेम और संरक्षण की भावना होती है वह देश उन्नति के पथ पर अग्रसर होता चला जाता है और वहां की सार्वजनिक संपत्ति विरासत के तौर पर संभाल कर अगली पीढ़ी को सौंप दी जाती है। एक अहम सवाल स्वम से हम आने वाली पीढ़ियों को क्या देकर जा रहे हैं? सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र में बदलकर , लोकतांत्रिक मूल्यों में कल्याण की भावना की जगह केवल मुनाफागिरी? सरकार को भी हर पहलुओं पर सोचने की जरूरत है कि आखिर देश में युवाओं, किसानों,व्यवसायियों को असन्तोष क्यों हो रहा है? अगर सरकार जिसके लिए जो नीति बना रही है और उसे ही समझ नहीं आ रही है तो यह कैसी नीतियाँ हैं।नीतियों में पारदर्शिता हो,लोककल्याण का भी समावेश होना जरूरी है।


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