जनप्रतिनिधियों के एशोआराम देश कैसे सहन करेगा?/प्रसिद्ध यादव।

   



जब देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रहा है। रुपये गिड़ते लुढ़कते डॉलर के मुकाबले 80 के पार हो गया। देश में बुजुर्गों को ट्रेन में यात्रा के लिए रियायत खत्म हो गया, एलपीजी के दाम बढ़ते बढ़ते 11 सौ के पार हो गया, सब्सिडी नाम मात्र के रह गया।पुरानी पेंशन योजना बन्द हो गई। सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र में बेचा गया, बीएसएनएल से जबरन कर्मचारियों को रिटायर्ड किया गया। लाखों पद रिक्त रखकर युवाओं को बेरोजगार बनाया गया।अब सेना की बहाली भी आई तो मात्र 4 साल के लिए।महंगाई सातवें आसमान पर है।सरकार की ये जनविरोधी नीतियां आमजन को कमर तोड़ने के लिए लाया गया है।अगर देश की हालत खस्ता है तो फिर मंत्री,राज्यपाल, सांसद, विधायक, बोर्ड के सदस्यों, अध्यक्षों की सुख सुविधाओं, वेतन में कटौती क्यों नहीं हो रही है? अगर आमजन की दाल रोटी से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है तो जनप्रतिनिधियों के मेवा मिष्टान्न, हवाई यात्रा, आलीशान बंगले, सुरक्षा व्यवस्था, नॉकर चाकर के खर्च से भी देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ी हुई है।

कहने के लिए तो अच्छे दिन के सपने दिखाकर  सरकार में आये,वादे तो भूल ही गये ।अब केवल नफरत फैलाने वाले बातें सुनाई पड़ती है। 

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