खगौल नो वेंडर जोन में वेंडर ही वेंडर!/प्रसिद्ध यादव।

       





  खगौल लॉक से बड़ी खगौल तक लोगों को आने जाने में पसीना छूट जाता है। गाड़ियों के आने जाने की बात छोड़ दें।पैदल पैर रखने की जगह नहीं होता है। इस रास्ते में नगर परिषद के नव निर्मित कार्यालय ,पीएचसी ,थानां हैं।इसकी चौड़ाई करीब 90 फिट है,लेकिन यह सिकुड़ते सिकुड़ते 20 फिट रह गया और उस पर भी वेंडरों का कब्जा। फुटपाथ दुकानों को छोड़ दें, दर्जनों स्थाई  दुकान बने हुए हैं ।मोतिचौक स्थाई रूप से ऑटो स्टैंड बना हुआ है। यहां से बालिगा स्कूल होते रेलवे स्टेशन जाना एक साहसिक कार्य है, कमजोर लोगों को पीसने का डर बना रहता है।थाना के मुख्य द्वार पर भी वेंडरों का निर्भीकता से दुकान चल रहा है। अगर इमरजेंसी में पुलिस की गाड़ी को कहीं जाना पड़ा तो मस्कत करनी पड़ेगी। जगह जगह पर नगर परिषद का नो वेंडर जोन का बोर्ड लगा हुआ है लेकिन इस पर इम्प्लीमेंट करने की सुध किसी को नहीं है।  पहले इस सड़क पर वेंडर नहीं थे।कोरोना काल में डिस्टेंस का पालन करने में वेंडर आये तब से इन्हें यहां के फुटपाथों से प्यार हो गया और वे इसी के हो कर रह गए। इससे पूर्व वेंडरों का बसेरा दानापुर रेलवे स्टेशन के दक्षिणी छोड़ के सड़क पर रेलवे स्कूल तक था,लेकिन रेलवे की प्रबल इच्छा शक्ति हुई और वेंडर गायब हो गए। अब देखना है कि अब स्थानीय प्रशासन पुलिस की इच्छा शक्ति कब जागती है कि नो वेंडर जोन होता है।पथ विक्रेता जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन अधिनियम के अनुरूप शहर को वेंडिंग जोन अाैर नो वेंडिंग जाेन एरिया में बांटकर अतिक्रमण की स्थाई समस्या से मुक्ति पर नगर परिषद ने काम शुरू कर दिया है। नप का वेंडिंग प्लान बनाकर वेंडरों को बसाने की योजना है। इस महत्वाकांक्षी योजना से वेंडरों को स्थाई रोजगार मिलेगा। अतिक्रमण की समस्या खत्म होगी।अब सवाल यह उठता है कि किसके संरक्षण में अतिक्रमणकारी फल-फूल रहे हैं। उनसे निपटने की जिम्मेदारी किसकी है। जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन या नगर निगम प्रशासन की। अतिक्रमण को लेकर उन्होंने अपनी आंखें क्यों बंद कर रखी हैं। आखिर अतिक्रमणकारी इतने निर्भीक क्यों हैं, उनको किसी का भय क्यों नहीं है। इन तमाम सवालों का जवाब लोग चाहते है। जिला, निगम एवं पुलिस प्रशासन सवालों के घेरे में है।बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 के तहत अतिक्रमणकारियों से निपटने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। यह निगम का जिम्मा है कि वह अतिक्रमणकारियों के खिलाफ अभियान चलाए और अवैध दुकानों को हटाए। अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए निगम प्रशासन को कानूनी शक्ति भी दी गई है। निगम इस प्रकार दे सकता है सजा, ये हैं कानून बिहार नगरपालिका अधिनियम की धारा 435 के अनुसार, नगरपालिका संपत्ति यानी सड़क, गली या पगडंडी का अतिक्रमण या उसमें अवरोध पैदा करना कानूनन अपराध है। ऐसा करने वालों पर एक हजार तक का जुर्माना लगेगा।धारा 436 के अनुसार, जुर्माना नहीं देने पर कारावास की सजा का प्रावधान है, जो छह माह या उससे अधिक की हो सकती है।जिला प्रशासन : अतिक्रमणकारियों से निपटने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है। प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि वह अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आए। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें। समय-समय पर अभियान चलाए और अतिक्रमणकारी नहीं माने तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। इसके लिए कानून में प्रावधान भी किया गया है। क्या है कानून - बिहार पब्लिक लैंड अतिक्रमण अधिनियम की धारा तीन के तहत जनहित में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण प्रशासन हटा सकता है। हाईकोर्ट ने भी यह जिम्मेदारी जिला प्रशासन को दी है। यदि प्रशासन ऐसा नहीं करता है तो इसे न्यायालय के आदेश की अवमानना मानी जाएगी। निगम या प्रशासन के अभियान के बाद खाली हुए स्थान पर दोबारा अतिक्रमण नहीं हो इसकी जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की है। संबंधित क्षेत्र के थाना को यह निर्देश वरीय अधिकारियों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने दी है।सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि अतिक्रमण हटाने के बाद यदि वहा फिर से कब्जा होता है तो इसके लिए स्थानीय थाना जिम्मेदार होगा।


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