राजनीतिक शुचिता के बिना राजनीति व्यर्थ ! /प्रसिद्ध यादव।
राजनीति में भले ही कोई ऊंचे मुकाम हासिल कर लें,लेकिन उसके अंदर राजनीति शुचिता नही है तो वह व्यर्थ है।आज सांसदों, विधायकों को जानवरों की तरह खरीद फरोख्त होती है। राजनेताओं के घर से इतने नोट बरामद हो रहे हैं कि नोट गिनने वाला मशीन भी हाँफ रहा है। जब ईडी, विजिलेंस राजनेताओं को पकड़ती है तो सीधे आरोप सरकार पर लग जाती है कि उन्हें तंग, बदनाम ,बदल लिया जा रहा है और उनके समर्थक ऐसा माना कर हंगामा खड़ा करते हैं। यह भी सही है कि सत्ता पक्ष के भ्रष्ट नेताओं को भी टारगेट करना चाहिए इससे जांच संस्थाओं की साख बनी रहेगी। भ्रष्टाचारी को जांच एजेंसियां बाद में पकड़ती है इससे पहले करीबी जनता स्केन कर समझ जाती है कि भ्रष्टाचार जम कर हुआ है और इससे करोड़ो अरबों का माल बना है। यक्ष प्रश्न है कि कुछ राजनेताओं के पास राजनीति उद्योग से इतना पैसा हो गया है कि हर रोज दोनो हाथों से ऐय्याशी में लुटा रहे हैं फिर भी खत्म नही हो रहा है लेकिन इसे राजनेता बनाने वाले कार्यकर्ताओं को दो जून की रोटी मयस्सर नही हो रही है।ऐसे समाजवाद के चोला पहने भेड़िये को पहचानना होगा और इसका अच्छी तरह से इलायज करना होगा।राजनीतिक शुचिता कैसे वापस लाई जाए? शुद्धता के लिये जरूरी है आमूल सफाई। यह वर्तमान स्थिति में संभव नहीं लगता। किंतु इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है। तो फिर? कोई यह कह दे कि हम राजनीतिक शुचिता का संकल्प लेते हैं तो उससे यह स्थिति नहीं बदलने वाली। कोई पूरी पार्टी में राजनीतिक शुचिता का संकल्प करा ले तब भी ऐसा नहीं होने वाला। हमारे ज्यादातर राजनीतिक दल इस अवस्था में जा चुके हैं, जहाँ से उसे जन सेवा, देश सेवा जैसे उदात्त लक्ष्यों और उसके अनुसार मूल्य निर्धारित करने की स्थिति में नहीं लाया जा सकता। यह आज की भयावह सच्चाई है, जिसे न चाहते हुए भी स्वीकार करना पड़ेगा। वास्तव में इसके लिये व्यापक संघर्ष, रचना और बलिदान की आवश्यकता है। जिस तरह से आज़ादी के संकल्प को पूरा करने के लिये लोगों ने अपना जीवन, कॅरियर सब कुछ दाँव पर लगाया उसी तरह काम करना होगा। वास्तव में यह नई आज़ादी के संघर्ष जैसा ही
है।
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