मीडिया चौथा खम्भा या धंधा !/प्रसिद्ध यादव।

   



मीडिया कितनी निष्पक्ष है।अब यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। खगौल से दैनिक हिंदुस्तान के अखबार के रिपोर्टर विशाल जदयू नेत्री के उकसाने पर आत्महत्या किया,लेकिन इसी अखबार में इसकी आत्महत्या की ख़बर आधे अधूरे छपी और प्रेमिका को जदयू की नेत्री कहीं नही लिखा गया।वही दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से इस खबर को स्पष्ट रूप से छापी।एक अखबार अपने रिपोर्टर के साथ  भी सत्ता के भय से इंसाफ नही कर सका बाकी के साथ क्या कर सकता है।हाँ कार्यालय में श्रद्धांजलि जरूर दी गई होगी।यही है आज के कॉरपोरेट जगत के पूंजीपतियों का अपने कर्मचारियों के साथ व्यवहार।मीडिया सत्ता की रखैल बन कर रह गई है,पूंजीपतियों के हाथों की खिलौने बनकर रह गई है।अखबार का फ्रंट पेज और सम्पादकीय क्या होगा?ये सत्ता तय करेगी।कुछ अखबारों को छोड़कर बाकी में पेड न्यूज और पित्त पत्रकारिता नज़र आती है। अगर किसी को यकीन नही है तो विगत एक सप्ताह के अखबारों के फ्रंट पेज, संपादकीय, आलेख को अवलोकन कर लें।मेरे आरोपों का जवाब मिल जाएगा।टीवी चैनलों की हालत मत पूछिए! मुझे करीब दो साल से अधिक हो गया किसी भी न्यूज़ चैनल को देखे हुए।गलती से कोई चालू कर दिया तो मैं घर के बाहर चला जाता हूँ।किस मुद्दे पर डिबेट करना है और ये सब तय रहता है।एंकर की कर्कश आवाज मानो काटने दौड़ता है। आज मीडिया की हालात इमरजेंसी से भी बुरा है।मेरा सलाह होगा कि न वैसे अखबार पढ़ें न न्यूज़ चैनल को देखें।

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