देश के अब बोझ बन गए (कविता) प्रसिद्ध यादव।
बुजुर्ग, युवा,खिलाड़ी
किसान, मजदूर ,कर्मचारी।।
न अब रियायत की सफ़र
न बुढ़ापे की पेंशन की डगर
न रोजी ,न रोजगार।
लोकतंत्र बन गया
विशुद्ध व्यापार!
राजनेताओं के न रहा
विद्वान सलाहकार
पूंजीपति बन गए
इनके यार।
मित्रहीत अब सर्वोपरि
आमजन से धोखाधड़ी।
सांसद, विधायक ,मंत्री
ये सब ही देश के संतरी
इसकी सेवा सुविधा न हो कम
खूब खिलाओ माखन मलाई मिश्री।
आलीशान दो बंगला
चाहे देश हो जाये कंगला
देश विदेश की सफ़र करवाओ
मुफ़्त में ही पांच सितारा होटल में ठहराओ।
जनता के जो ये सेवक ठहरे
इनकी सेवा में न कोई कमी पड़े।
सुरक्षा की रखो इसके पूरा ख्याल
दर्जनों पुलिस कर दो तैनात।
कोई अपने पॉकेट से पैसा थोड़े लगना है।
देश की जनता सह लेगी
घुट -घुट कर जो मरना है।
क्या पक्ष क्या विपक्ष?
सब इस मुद्दे पर है एकमत ।
राजनीति का एक घराना है
दूसरों को मुश्किल आना है।
एक बार नुमाइंदे बन गए
अनेक पीढियां तर गए।
देश के अब बोझ बन गए।
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